काश! ऐसे दिन आ जाएँ
रात हो चली थी. मैं बिस्तर में पड़े सोच रहा था कि काश! चरित्र प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, आयु प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाण पत्र, खसरा-खतौनी, चिकित्सा प्रमाण पत्र आदि सरकारी जरूरी दस्तावेज बिना रिश्वत मिल जाए. सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स, गृहकर, जलकर बिना रिश्वत दिए ठीक-ठीक तय हो जाए. पुलिस बिना बदसलूकी किये मुकदमा दर्ज करते हुए पीड़ित की मदद कर दे. सड़क पर चलते हुए परिवहन विभाग अधिकारी-कर्मचारी कागज देखकर ड्राइवर को जाने दें. बिजली महकमे के लोग सहज सुलभ बिना रिश्वत कनेक्शन दे दिया करें. मौरंग-गिट्टी की ट्रक हमीरपुर-महोबा से बिना रिश्वत मंजिल तक पहुँच जाए..तो जीवन कितना आसान हो जाये. महंगाई खुद-ब-खुद ही काबू में आ जाएगी. इसी झाले में उलझे हुए नींद आ गई, पता नहीं चला.
फिर राजा भेष धारी सज्जन से मुलाकात हुई. उनके आसपास ढेरों लोग काले कपड़ों में जमा थे. मैं डरा हुआ था. तभी वे आए. बोले-बहुत चिंतित हो वत्स. मैंने कहा, जी. बोले-तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. अब मैं आ गया हूँ. सब ठीक हो जाएगा. मुझे सब पता है. कहाँ-कहाँ गड़बड़ है. अच्छे दिन आएंगे. जरूर आएंगे. निराश होने की कोई जरूरत नहीं. बस तुम देखते जाओ. जो कुछ हमसे हो सकेगा, हम देश के लिए, अपनी प्रजा के लिए करेंगे. मैंने कहा-महाराज, ये आप के कारिंदे बहुत मोटी चमड़ी वाले हैं. इन पर कोई असर ही नहीं पड़ता. बिना रिश्वत ये हिलते ही नहीं. अगर पहुँच नहीं है तो कोई भी सरकारी काम मुमकिन ही नहीं है. घर बन रहा है इन दिनों. ट्रक वाले से कहा कि भैया, मौरंग थोड़ी सस्ती कर दो. बोला, कैसे कर दूं. खनन फीस, ट्रक का भाड़ा तो देना ही है. 20 हजार रुपये से ज्यादा की रिश्वत और लग जाती है हमीरपुर-महोबा से खाली लखनऊ आने में. मैंने अपने इंजीनियर से कह रखा था कि मकान नियम-कानून के दायरे में ही बनना चाहिए. हमें प्राधिकरण से कोई नोटिस नहीं चाहिए..तब तक एक नोटिस थमा गया. बोला-साहब से मिल लेना फिर काम कराना. नोटिस के मुताबिक मेरे नवनिर्मित घर में स्नानागार का साइज़ नक्शे से मैच नहीं कर रहा है. दफ्तर पहुंचा. इंजीनियर साहब तो मिले नहीं, उनके एक साथी से बात हुई. उन्होंने सुझाव दिया कि मामला ले-देकर निपटा लो. क्या फायदा, स्नानागार तोड़ना पड़े या फिर दण्ड लगे. मैंने कहा-तोड़ना तो मैं भी नहीं चाहता. क्योंकि बहुत पैसा लग चुका है. फिर उन्होंने कहा-मैं भी तो यही कह रहा था. किसी तरह पांच हजार में मामला निपटा और स्नानागार बिना तोड़े ही ठीक मान लिया गया.
अभी घर में पूजा-पाठ करके घुसा ही था कि नगर निगम की नोटिस आ गई. कहने को तो इसकी गणना बेहद आसान है लेकिन असल में है बहुत कठिन. इसे भी ले-देकर निपटाया. इस जमीन की रजिस्ट्री के लिए गया तो वहां हर जगह रिश्वत देनी पड़ी. वह भी हंसते-हंसते. भूखंड जो खरीदा था मैंने. छोटा सा प्लाट था, सो गिट्टी, मौरंग, ईंट सड़क पर गिरवा दिया था. इस समस्या से निपटने में दो विभागों को रिश्वत देनी पड़ी. पासपोर्ट बनवाना था. सुन रखा था कि यहाँ सब कुछ ऑनलाइन है. कर दिया आवेदन. पुलिस जांच आई. मैं भी अकड़ में था. रिश्वत माँगी तो नहीं पुलिस ने लेकिन जब पासपोर्ट नहीं आया तो पता करने पहुंचा. वहाँ पता चला कि पुलिस ने निगेटिव रिपोर्ट भेज दी है. फिर दुबारा जाँच का नाटक हुआ. पुलिस को सही रिपोर्ट लगाने के लिए रिश्वत दी तब दर्शन हुए पासपोर्ट के. मैंने बोला-कहाँ तक बताऊँ महाराज. कई दिन बीत जाएंगे. बोले-निश्चिंत हो जाओ वत्स, तुमने जितनी बातें बताई हैं, वह सारी की सारी हमारे अधीन काम कर रहे राज्य से जुड़ी हैं. हम अपने ताल्लुकेदारों से कहेंगे कि वे इन चीजों को देखें. और जरूरत पड़ने पर फौरी कार्रवाई भी करें.
तुम सीधे मेरी मातहती वाले विभागों की बात करो. उन्हें तुरंत ठीक कर दूंगा. महाराज, महंगाई बहुत है. कोई काबू करने वाला नहीं है. कहते हैं, व्यापारियों पर किसी का बस नहीं है. वे जो चाहें, कीमत तय करें. कोई मानक नहीं, कोई रोक-टोक नहीं. मैं इसे भी देखूँगा. असल में, व्यापारी हमारी पूँजी है. देश के ढेरों खर्च उसी पर हैं. हर तरह के टैक्स हम उसी के जरिये वसूल करते हैं. देश चलाने के लिए पैसे तो चाहिए होते हैं न. तुम तो समझदार हो. व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के इरादे से ही मैंने लोकतंत्र की स्थापना की है. चुनाव आदि में व्यापारी बहुत मददगार होते हैं. इसलिए राजा होने के कारण हमें उनके लिए कुछ न कुछ करना पड़ता है. उनकी भरपाई फिर भी नहीं हो पाती. इसीलिए समुद्री संपत्ति से लेकर जल, जंगल, जमीन तक हमें उन्हें सस्ती दरों पर देना पड़ता है..समझ रहे हो न. परेशान नहीं हो वत्स, हम कुछ न कुछ करेंगे जरूर. मैंने बोला-महाराज, पिछली मुलाकात में अपने कहा था कि मुझ समेत करोड़ों बेरोजगारों को भी रोजगार मिल जाएगा. पर हुआ कुछ नहीं. जोर से डपटकर बोले-तुम मेरे राजा हो या मैं तुम्हारी प्रजा. ऊँगली क्या पकड़ा दी, तुम तो पूरा का पूरा पहुंचा ही पकड़ने का प्रयास कर रहे हो. राजा साहब चल पड़े. काले कपड़ों वालों ने मुझे धक्का दिया और उन्हें अपने घेरे में ले लिया. मैं भी भागा पीछे-पीछे...लेकिन गिरा मुंह के बल धड़ाम. आवाज सुन बेगम उठीं. क्या हुआ, कैसे गिर पड़े, ज्यादा चोट तो नहीं लगी आदि-आदि..मैंने पूरा किस्सा सुनाया. बोलीं..तुम्हें न, बेवजह देश की चिंता सताए रहती है. अपना काम रिश्वत देकर चलाओ. नहीं तो ऐसे ही भुगतोगे. समझे कि नहीं. मैंने कहा-समझ गया भाग्यवान. समझ गया...
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अभी घर में पूजा-पाठ करके घुसा ही था कि नगर निगम की नोटिस आ गई. कहने को तो इसकी गणना बेहद आसान है लेकिन असल में है बहुत कठिन. इसे भी ले-देकर निपटाया. इस जमीन की रजिस्ट्री के लिए गया तो वहां हर जगह रिश्वत देनी पड़ी. वह भी हंसते-हंसते. भूखंड जो खरीदा था मैंने. छोटा सा प्लाट था, सो गिट्टी, मौरंग, ईंट सड़क पर गिरवा दिया था. इस समस्या से निपटने में दो विभागों को रिश्वत देनी पड़ी. पासपोर्ट बनवाना था. सुन रखा था कि यहाँ सब कुछ ऑनलाइन है. कर दिया आवेदन. पुलिस जांच आई. मैं भी अकड़ में था. रिश्वत माँगी तो नहीं पुलिस ने लेकिन जब पासपोर्ट नहीं आया तो पता करने पहुंचा. वहाँ पता चला कि पुलिस ने निगेटिव रिपोर्ट भेज दी है. फिर दुबारा जाँच का नाटक हुआ. पुलिस को सही रिपोर्ट लगाने के लिए रिश्वत दी तब दर्शन हुए पासपोर्ट के. मैंने बोला-कहाँ तक बताऊँ महाराज. कई दिन बीत जाएंगे. बोले-निश्चिंत हो जाओ वत्स, तुमने जितनी बातें बताई हैं, वह सारी की सारी हमारे अधीन काम कर रहे राज्य से जुड़ी हैं. हम अपने ताल्लुकेदारों से कहेंगे कि वे इन चीजों को देखें. और जरूरत पड़ने पर फौरी कार्रवाई भी करें.
तुम सीधे मेरी मातहती वाले विभागों की बात करो. उन्हें तुरंत ठीक कर दूंगा. महाराज, महंगाई बहुत है. कोई काबू करने वाला नहीं है. कहते हैं, व्यापारियों पर किसी का बस नहीं है. वे जो चाहें, कीमत तय करें. कोई मानक नहीं, कोई रोक-टोक नहीं. मैं इसे भी देखूँगा. असल में, व्यापारी हमारी पूँजी है. देश के ढेरों खर्च उसी पर हैं. हर तरह के टैक्स हम उसी के जरिये वसूल करते हैं. देश चलाने के लिए पैसे तो चाहिए होते हैं न. तुम तो समझदार हो. व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के इरादे से ही मैंने लोकतंत्र की स्थापना की है. चुनाव आदि में व्यापारी बहुत मददगार होते हैं. इसलिए राजा होने के कारण हमें उनके लिए कुछ न कुछ करना पड़ता है. उनकी भरपाई फिर भी नहीं हो पाती. इसीलिए समुद्री संपत्ति से लेकर जल, जंगल, जमीन तक हमें उन्हें सस्ती दरों पर देना पड़ता है..समझ रहे हो न. परेशान नहीं हो वत्स, हम कुछ न कुछ करेंगे जरूर. मैंने बोला-महाराज, पिछली मुलाकात में अपने कहा था कि मुझ समेत करोड़ों बेरोजगारों को भी रोजगार मिल जाएगा. पर हुआ कुछ नहीं. जोर से डपटकर बोले-तुम मेरे राजा हो या मैं तुम्हारी प्रजा. ऊँगली क्या पकड़ा दी, तुम तो पूरा का पूरा पहुंचा ही पकड़ने का प्रयास कर रहे हो. राजा साहब चल पड़े. काले कपड़ों वालों ने मुझे धक्का दिया और उन्हें अपने घेरे में ले लिया. मैं भी भागा पीछे-पीछे...लेकिन गिरा मुंह के बल धड़ाम. आवाज सुन बेगम उठीं. क्या हुआ, कैसे गिर पड़े, ज्यादा चोट तो नहीं लगी आदि-आदि..मैंने पूरा किस्सा सुनाया. बोलीं..तुम्हें न, बेवजह देश की चिंता सताए रहती है. अपना काम रिश्वत देकर चलाओ. नहीं तो ऐसे ही भुगतोगे. समझे कि नहीं. मैंने कहा-समझ गया भाग्यवान. समझ गया...
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