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Showing posts from November, 2018

हाय सर, बाई द वे आई एम रिया!

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वाकया हाल ही का है| व्हाट्सएप पर एक अनजाने नंबर से सन्देश आया..हाय सर| मैंने लिखा-यस प्लीज| सन्देश का क्रम आगे बढ़ा-मुझे किसी ने आपका नम्बर दिया है| कहा गया है कि आप नौकरी दिलवाने में मददगार हो सकते हैं| मैंने जवाब दिया-आपको डांटने का मन कर रहा है| आप कौन हैं? कहाँ से लिख रहे हैं या लिख रही हैं? आप की शैक्षिक योग्यता क्या है? अपने बारे में कुछ बताएँ, यह भी जानकारी दें कि किसके माध्यम से आप मुझे लिख रहे हो| जो जवाब आया, उससे मैं खुद भौचक रह गया| क्यों कि अगला सन्देश बेहद खतरनाक था| लिखा गया-आपने पूछा ही नहीं-बाई द वे, आई एम रिया| दिनेश पाठक मैं ऐसा मानता हूँ कि हमारे देश का युवा ज्यादा होशियार है| चपल है| पुरानी पीढ़ी से कहीं ज्यादा अच्छा सोचता-समझता है, पर जब इस तरह का संवाद होने पर निराशा संभव है और मैं इसे अपवाद ही मानता हूँ| इस घटना का उल्लेख करने के पीछे मेरी मंशा रिया या उसकी तरह का व्यवहार करने वाले किसी भी नौजवान की गलती गिनाना नहीं है| केवल ध्यान दिलाना है कि अगर आपको किसी से मदद चाहिए हो तो क्या इस तरीके से मदद मिल सकती है? मुझे लगता है कि नहीं| यह घटना बहुत कुछ सीख दे

उम्मीद छह : पटाखों में जली टीना, पापा ने खाई यह कसम

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वो कहते हैं न पैसा बहुत कुछ तो हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं| इस दीवाली चेतावनियों के बावजूद टीना ने अकेले पटाखा फोड़ा और हादसे का शिकार हो गई| अब वह अस्पताल में है| भरा-पुरा परिवार है इस किशोरी का| नौकर-चाकर| मम्मी-पापा| बड़ा भाई भी लेकिन पैसा देने के बाद शायद सब निश्चिंत हो गए और हो गया हादसा| किसी ने भी यह देखने-समझने की कोशिश भी नहीं की कि बिटिया रानी कौन से पटाखे लेकर आई है| यह काम हुआ होता तो संभव है कि हादसे से बचा जा सकता था| दिनेश पाठक हादसे की जानकारी मिलने के बाद से ही सुरभि ने कुछ खाया-पीया नहीं| वह अस्पताल में अपनी दोस्त के साथ डटी हुई है| सब लोग अस्पताल से घर के बीच चक्कर लगा रहे हैं लेकिन सुरभि नहीं| इस मसले पर वह किसी की सुनने को भी तैयार नहीं है| उसे अफ़सोस इस बात का है कि आखिर वह अपनी टीना को इस हादसे से क्यों नहीं बचा पाई? बुदबुदा रही थी-मैंने टीना से कहा भी था कि पटाखे अकेले नहीं फोड़ना लेकिन नहीं वह भला क्यों मेरी सुनने लगी| टीना के पापा ने भी पटाखा अकेले न फोड़ने की सलाह दी थी लेकिन मौके पर वे खुद नहीं थे| बड़े आदमी हैं तो उनके अनेक कमिटमेंट रहे होंगे| मिठाइयाँ

युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है अगम की कहानी

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इस बार मिलिए अगम खरे से| महज 28 वर्ष का यह नौजवान बहुत ऊँची उड़ान भर चुका है| लेकिन  जमीन पर रहकर जमीन की ही सोचता है| आम हिन्दुस्तानी के बारे में सोचता है| भविष्य की जरूरतों पर विचार-विमर्श करता है| समाधान की तलाश में पूरी दुनिया घूम रहा है| अगम का कहना है मैं लोगों की जरूरतों के हिसाब से काम करना चाहता हूँ| मैं तो दुआ करूँगा कि ऊपर वाला अगम की तमन्ना पूरी करे क्योंकि वह इन दिनों 25-30 वर्ष बाद देश-दुनिया के सामने आने वाली भोजन की समस्या के समाधान पर काम कर रहा है| आमीन अगम| अगम खरे अगम से मेरी मुलाकात पिछले दिनों लखनऊ में हुई| बातचीत के केंद्र में रोबोट रहा| मुझे लगा कि इस युवा से बात की जानी चाहिए| मैंने पहल की| दोनों साथ बैठे तो बहुत दूर तक की बातें हुईं| राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय से वर्ष 2012 में बीटेक करने वाला यह नौजवान रोबोट की दुनिया का दादा-नाना लगता है| अगम के प्रेरणा स्रोत महान वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी और उनके शिक्षक प्रो. एमएल भार्गव जी हैं| इस नौजवान का मानना है कि इन दोनों ही महान हस्तियों के बिना वे कुछ भी नहीं| अगम कहते हैं कि कुछ सालों बाद हमारे

उम्मीद पांच : कैसे मनेगी टीना और सुरभि की दीवाली, जानना नहीं चाहेंगे

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टीना-सुरभि, दोनों ही बच्चियाँ दीवाली की तैयारियों में जुटी हुई हैं| सुरभि जहाँ माँ की मदद से घर में सफाई आदि में जुटी है तो टीना पांच हजार के पटाखे कई दिन पहले लाकर रखी है| मम्मी-पापा के साथ वो बाजार जाकर अपने लिए कपड़े भी ले आई| पूरे 12 हजार की ड्रेस लेकर आई है टीना| घर में आते ही वह ड्रेस दिखाने सुरभि के पास दौड़ी| घर में खिड़की दरवाजे की सफाई में जुटी सुरभि के हाथ गंदे थे| वह भला कैसे छूती? और टीना है कि आमादा है कि वह हाथ में ले और अपनी राय दे| दिनेश पाठक उसने काम बंद करने की जिद की| बोली-तुम मेरी इकलौती दोस्त हो जिससे मैं प्यार करती हूँ| काम बंद करो| हाथ धुलो| और इस ड्रेस को देखो| सुरभि दोस्त की जिद के आगे टूट गई| भागकर नल के नीचे हाथ धोने लगी| साबुन था नहीं तो हाथ साफ नहीं हुए| फिर मिटटी उठाया और साबुन की तरह हाथ साफ किया| अब उसका हाथ एकदम साफ था| सुरभि ने कहा-लाओ मेरी बहना| तुम्हारी ड्रेस देख लूँ|  हाथ में लेते ही सुरभि ने कहा-बहुत सुंदर है| इसमें तो मेरी बहन प्रिंसेज लगेगी, प्रिंसेज| टीना खुश होकर वापस मुड़ी ही थी कि सवाल दाग दिया..आंटी ने तुम्हारे लिए ड्रेस खरीदी या नहीं

प्रतिभा और बहते हुए पानी को रोकना मुमकिन नहीं

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बात कोई 15 वर्ष पुरानी है| मैं अखबार में काम करता था| उस जमाने में मई महीने का अंतिम सप्ताह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण होता था| इसी दौरान हमें इन्क्रीमेंट के पत्र मिलते और इसी के बाद दो महीने के इन्क्रीमेंट वाली सेलरी बैंक खाते में आ जाती| खैर, मेरे सम्पादक जी श्री नवीन जोशी जी ने एक-एक कर सबका पत्र देना शुरू किया| मेरी भी बारी आई| देखते ही मैंने आपत्ति जताई कि सर अमुक व्यक्ति मेरे से जूनियर भी है| जिम्मेदारी भी कम उठाता है फिर उसकी बढ़ोत्तरी मुझसे ज्यादा कैसे हो गई? सर ने बताया कि तुममे प्रतिभा है इसलिए तुम्हें जिम्मेदारी मिली| इसका लाभ तुम्हें कहाँ तक मिलेगा, अभी तुम भी नहीं जानते| मेहनत से काम करो| हुआ भी वैसा ही, जैसा सर ने कहा था| उन्होंने यह भी जोड़ा कि रुपए में भले तुम्हें कम लाभ मिला है लेकिन प्रतिशत में तुम्हारी बढ़ोत्तरी 20 फ़ीसदी है और उसकी 12| सर ने कागज भी दिखाए| मैंने माफ़ी माँगी और बाहर आ गया| दिनेश पाठक हाल ही में मेरी मुलाक़ात एक ऐसी नौजवान से हुई जो पांच लाख रुपया सालाना की नौकरी में है| लेकिन परेशान है| जानते हैं क्यों? क्योंकि उसका टीम मेट उससे ज्यादा तनख्वाह पात

कुबूलनामा-तीन : प्यार हो तो काली साड़ी विद पीला बॉर्डर जैसा, नहीं तो न हो

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एकदम टटका कॉलेज से निकला था| उम्र अल्हड़ थी| जीवन की ऊँच-नीच से वाकिफ़ नहीं था| जो दोस्त कहें वही सही| कुछ सीनियर्स के साथ बैठकी चल रही थी| वे अक्सर काली साड़ी विद पीला बॉर्डर की बातें करते| समझ नहीं आ रहा था कुछौ| दिनेश पाठक पूछ बैठे तो पड़ा कंटाप| कान झन्ना गया| फिर वे लोग बोले-जानते हो जीवन चलाने के लिए लाल-नीली-पीली की बड़ी भूमिका है| ख़ास बात यह है कि इसे पाने के लिए काली साड़ी विद पीला बॉर्डर से दोस्ती करनी पड़ेगी| मैंने कहा-भैया...काली माई से भला दोस्ती कैसे हो पाएगी| उ तो नाराज हो जाएँ तो किसी की भी वाट लगा दें| दूसरी ओर कान पर फिर पड़ा एक जोरदार...लाल हो गया गाल भी और कान भी| कच्ची उम्र थी| भैया लोग थे| मारते भी थे और प्यार भी पूरी दमदारी से करते थे| पैसे की कोई कमी नहीं| किसी की हिम्मत नहीं कि मेरी ओर आँख उठाकर भी देख ले| कॉलेज में लड़कियां भी रंज करती थीं| भैया लोगों के इस गिरोह में थोड़े दिन की बैठकी के बाद पता चला कि इन सबकी काली-पीली से ही दोस्ती है| प्यार में पूरी ईमानदारी यहीं मैंने देखी| हर आदमी अपने प्यार पर कुर्बान होने को राजी| लेकिन दूसरी के सम्मान में ठेस पहुंचान

कुबूलनामा-दो : मैं उनके प्यार में क्या फँसा, वो तो हमें दुनिया से उठाने आ गईं

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मेरा प्यार कोई बीस साल पुराना है| मैं दोस्तों के साथ अपने घर के बगल वाले चौराहे पर नुक्कड़ वाली दुकान पर खड़ा था| वहीँ पहली दफा देखा| मेरे दोनों दोस्त भी कनखियों से देख रहे थे| ऐसा मैंने कई दिन तक लगातार देखा| फिर मैं कॉलेज चला गया| वापस लौटा तो मुझे पता चला कि दोनों से उनकी गहरी दोस्ती हो गई| इतनी कि पूछो नहीं| धीरे-धीरे यह बात आम हो चली थी| पूरा मोहल्ला जान गया इनकी दोस्ती को या कहिए प्यार को। लेकिन ये बेशर्म की तरह हँसते हुए सबकी बातें हंसी में उड़ाते रहे| मोहल्ले वालों को चिंता थी कि कहीं उनकी औलाद को भी ये न बिगाड़ दें इसलिए प्रायः ये अपने घरों से निकलते और चौराहे पर ही जमा हो जाते| हँसते-मुस्कुराते इनके दिन कट रहे थे|  दिनेश पाठक धीरे-धीरे मुझ पर इनका असर होने लगा और मैं खुद भी एक के फेर में आ गया| गजब का तीखापन| बरबस मैं खिंचता चला गया| देखते ही देखते मैं उसके आगोश में था| मुझे अपनी सुध-बुध नहीं थी| जो चर्चा मेरे दोस्तों के बारे में हो रही थी, अब मेरे बारे में भी शुरू हो गई| सब हमें घृणा की दृष्टि से देखने लगे लेकिन कोई सामने आकर कुछ इसलिए नहीं बोलता था कि कहीं हम उनके सा

कुबूलनामा-एक : उत्तरकाशी की यात्रा में मैं, वो और उनकी अदाएँ

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बात थोड़ी पुरानी है| मैं उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी जिले के भ्रमण पर था| तभी अचानक मेरी नजर पड़ी| वह इठलाती, बलखाती चली आ रही थी| देख वह भी रही थी मुझे पूरे मनोयोग से और मैं तो खैर अपलक निहारे ही जा रहा था| पलक झपका भी हो तो मुझे याद नहीं| कभी झुरमुटों से हठखेलियाँ तो कभी नृत्य की अनेक मुद्राएँ| वाह क्या कहने...धीरे-धीरे मैं भी चलता रहा और वह भी...कभी लगा कि अब हम करीब हुए कि तब| सोचा यह भी जैसे ही मौका मिलेगा, मिलेंगे, खूब बातें करेंगे| गया भी थोड़ा करीब लेकिन निः शब्द था...जुबान फूटी ही नहीं| सारा समय निहारने में ही चला गया और सांझ हो गई|  दिनेश पाठक यह सिलसिला कई दिन तक चला| लुकाछिपी करते हुए मैं वापसी की डगर पर था, पीछे मुड़कर देखा तो वह भी चली आ रही थी| मुझे लगा कि वे मेरे पीछे आ रही हैं लेकिन कुछ ही किलोमीटर चलने के बाद मैंने देखा कि वे अपने जैसी एक और बला की खूबसूरत के साथ कहीं दूसरी ओर जाने लगीं...थोड़ी देर ओझल होने पर मन मेरा भी बेचैन हुआ| यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी थोड़ी दूर बाद फिर मुझे वो दिखीं| अंदाज वही| आहा, क्या कहने| फिर हम साथ-साथ चलते रहे| अब उनके चेहरे पर थका

उम्मीद चार : मम्मी-पापा ने अपनी टीना को सोते-जागते कब देखा?

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सर्वेंट क्वार्टर के आँगन में एक खूबसूरत सा घर बनकर तैयार है| मिटटी, फूस, लकड़ी के सहारे इसे सुरभि ने अपने हाथों से बनाया है| माँ से मिली सीख के सहारे तैयार यह नन्हा सा दीवाली वाला घर वाकई बेहतरीन बन पड़ा है| अब इस नए घर के आँगन में भी दीवाली वाले दिन पकवान बनेंगे| इसे बनाएगी सुरभि, अपनी मम्मी की मदद से| दिनेश पाठक जो लोग गाँव से हैं या शहरों में पुरानी आबादी के बीच रहते हैं| जहाँ अभी भी घर-आँगन बचे हुए हैं, वहाँ दीवाली के लिए छोटे घर बनाने की परम्परा है| घर के छोटे बच्चे इस घर को बनाते भी हैं और सजाते भी हैं| मिट्टी के बर्तन में कुछ न कुछ खाना बनाने की परम्परा भी रही है| खैर, इन्हीं व्यस्तताओं की वजह से तीन-चार दिन से सुरभि-टीना की मुलाकात नहीं हो पाई थी| बेचैन टीना सीधे वहीँ आ धमकी| छोटा सा घर देखकर टीना उछल पड़ी| उसने कहा..सुरभि बहुत बढ़िया घर बनाया तुमने| हाँ यार, इसीलिए तुमसे मुलाकात भी नहीं हो पाई, सुरभि ने कहा| कोई नहीं चलो, अब खेलते हैं| सुरभि ने कहा-बस थोड़ी देर खेलेंगे| क्योंकि मुझे पूरे घर की सफाई करनी है| माँ तो कोठी के काम में व्यस्त है, इसलिए यहाँ की सफाई मुझे ही

उम्मीद तीन : टीना की मम्मी टेंशन में, कहाँ से लायें कहानियों का पिटारा?

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टीना और सुरभि| इन दोनों ही नाम से वाकिफ हैं न आप! पिछले ही हफ्ते मुलाकात हुई थी इनसे आपकी| दोनों बहुत गहरी दोस्त हैं| एक ही अहाते में रहती हैं ये किशोरवय बच्चियाँ| सगी बहनें नहीं, लेकिन प्यार उनसे भी कहीं ज्यादा| फर्क यह है कि एक ही जगह रहने के बावजूद इनका लालन-पालन अलग तरीके से हो रहा है| एक की माँ नाजों से पाल रही तो दूसरे की पैसों और नौकरों के सहारे| देखना रोचक होगा कि जीत किसकी होगी? दिनेश पाठक सुरभि अपनी मम्मी के साथ इसी अहाते में सर्वेंट क्वार्टर में रहती है और टीना मम्मी-पापा के साथ बड़ी सी कोठी में| सुरभि अपनी मम्मी की एकमात्र उम्मीद है| उसके अब इस दुनिया में नहीं हैं| जबकि टीना का एक बड़ा भाई भी है| टीना जो चाहती है, उसे मिलता है लेकिन सुरभि के केस में उलट है| उसकी मम्मी स्कूल फीस, कॉपी-किताब के लिए हाड़तोड़ मेहनत करती है| लक्जरी के लिए उस पर पैसे नहीं है| लेकिन सुरभि को कोई शिकायत नहीं है और टीना हरदम शिकायती मोड में ही रहती है| सुरभि की दुनिया स्कूल और घर तक ही सिमटी हुई है लेकिन टीना की दुनिया उससे एकदम इतर है| कई बार टीना का होम वर्क तक सुरभि को करना होता है| इसके लि

उम्मीद दो : आपकी बिटिया टीना है या सुरभि? तलाशिएगा जरुर

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टीना बहुत निराश थी| उसने अपनी दोस्त सुरभि से कहा कि यार इस बार पापा ने दीवाली पर सिर्फ दो हजार रुपए देने का वायदा किया है| सुरभि ने उसे गले लगा लिया| बोली-दीवाली पर दो हजार की पाकेट मनी..यार तू कितनी लकी है| टीना भड़क उठी...इसमें लकी जैसा क्या है? आजकल होता क्या है दो हजार में? सुरभि ने कहा-दो हजार में तो मैं सारे जहाँ की खुशियाँ एक साथ खरीद लूँ| मम्मी के लिए नई कड़क साड़ी, अपने लिए सूट, अंकित के लिए ढेर सारे गुब्बारे और तीन-चार महीने की स्कूल फीस भी भर दूँगी मैं दो हजार रुपयों से... दिनेश पाठक टीना बोली...सुरभि यार तू अपना भाषण बंद कर| तुझे पता भी है कुछ पटाखे की एक लड़ी भी तीन-तीन हजार के आते हैं| चार दोस्तों के साथ सीसीडी बैठ जाओ, दो हजार का पता नहीं चलता| हे टीना! हमारी काफ़ी तो दो रुपए की पुड़िया से बनती है| पता है मम्मी दूध उबालती है चीनी मिलाकर| मैं उसमें दो रुपए वाली काफ़ी की पुड़िया डालती हूँ और हम तीनों बैठकर पीते हैं| कसम से इतना मजा आता है न कि तुम्हारी सीसीडी का स्वाद बेमतलब लगेगा, अगर किसी दिन मेरी मम्मी के हाथ की काफी पी लोगी| टीना ने कहा-अभी तो मुझे पहले पापा से लड़ाई

उम्मीद एक : उम्मीदों पर दुनिया कायम है...इसे पकड़ कर रखें

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उम्मीद खुद से| बच्चों से| पत्नी से| समाज से| दोस्तों से| सहकर्मियों से| मम्मी से| पापा से| नाना से| नानी से| दादा से| दादी से होती ही है| कोई माने या न माने, पर यही उम्मीद हमें रोज नई ऊर्जा देती है| जब कभी किसी से यही उम्मीद टूट जाती है तो हम कई बार निराश होते हैं, लेकिन जीवन यहीं ख़त्म नहीं होता| सीखने का एक नया द्वार यहीं से खुलता है| दिनेश पाठक जब कहीं से उम्मीद टूटकर बिखरती है तो कहीं और एक नई उम्मीद बाहें फैलाए खड़ी भी दिखती है| बस खुली आँखों से हमें देखना आना चाहिए| अगर उम्मीदों को झटका न लगे तो हम शायद अतिरिक्त प्रयास करना भी छोड़ देंगे| वो बड़े-बुजुर्ग कहते हैं न, प्लान ए फेल हो तो प्लान बी तैयार रखो| बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउसेज तो प्लान सी की बात भी करने लगे हैं| असल में मैं कोई जीवन के फ़लसफ़े पर बात नहीं करने जा रहा हूँ| मैं इसी उम्मीद के सहारे बात करने वाला हूँ आपकी सबसे प्रिय संतान के बारे में| वो चाहे बेटी हो या बेटा| होते तो ये दिल के बेहद करीब हैं| उसकी गलतियों पर आप उसे चाहे फटकारें, डांटे, पिटाई-कुटाई करें लेकिन बेइंतहाँ प्यार उसे तब तक करते हैं, जब तक आपको वह उम्मीदो