पंडित जी के गुस्से के शिकार हुए सांसद शेट्टी
पंडित जी आज बेहतरीन मूड में थे. सुबह-सुबह नाती-पोतों को जलेबी खिलाई और कचौड़ियाँ भी. तभी उनकी नजर अख़बार पर पड़ी. भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी के हवाले से एक खबर छपी थी, जिसमें कहा गया था-किसान आजकल भुखमरी या बेरोजगारी की वजह से नहीं बल्कि फैशन में ख़ुदकुशी कर रहा है. पंडित जी का माथा चकराया. नाम कुछ सुना-सुना लगा उन्हें गोपाल शेट्टी का. बोले-इसीलिए पढ़ाया-लिखाया था. मामूली आदमी था. परिवार की आर्थिक स्थितियां बिल्कुल ठीक नहीं थीं. परिवार के लोग मिल मजदूर थे. मेहनत किया तो सांसद बन गया लेकिन लगता है कि दिमाग उलटी दिशा में चलने लगा. तभी तो ऐसे फूहड़ और निंदनीय बयान जारी कर रहा है.
सारी दुनिया जानती है कि महाराष्ट्र के कई इलाकों में किसान बड़ी संख्या में खुद्कुशी कर रहे हैं. और ये बंदा वहीँ से सांसद है. बुंदेलखंड में किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं. सरकारी दस्तावेजों में भी यह बात साबित हो चुकी है. अब तो एनसीआरबी के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक चीख-चीख कर कर रहे हैं. योजना आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारा देश भुखमरी की चपेट में है. यह तब है जबकि देश में अनाज का उत्पादन बढ़ा है. फिर भी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में दर्ज 76 देशों में भारत का नंबर 55 वां है. जिस देश के बड़े हिस्से में भुखमरी हो, वहाँ का एक सांसद ऐसा घटिया बयान दे, तो यही कहा जाएगा कि अब से एक स्कूल सांसदों के लिए खोले सरकार. खुद से तो पढ़ने-लिखने वाले हैं नहीं. पश्चिम बंगाल के चाय बगान वाले इलाके, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, बुंदेलखंड, और ओड़िसा का कालाहांडी जैसे इलाके तो हर वक्त इसीलिए सुर्ख़ियों में बने रहते हैं. फाइट हंगर फाउन्डेशन की एक रिपोर्ट कहती है भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसी पूरे दक्षिण एशिया में कहीं देखने को नहीं मिलती. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में अनुसूचित जनजाति के 28 फ़ीसदी, अनुसूचित जाति के 21 फ़ीसदी, पिछड़ी जाति के 20 और अन्य ग्रामीण समुदाय के 21 फ़ीसदी लोग कुपोषण के बोझ तले दबे हुए हैं. फिर ये नामुराद कैसे इस तरह की बेहूदी बातें करके जनता की गरीबी का मजाक उड़ा रहा है और ख़ुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारीजनों के जख्म हरे करने की गुस्ताखी भी. पंडित जी का गुस्सा यहीं शांत नहीं हुआ. बोले-मुझे मुंबई या दिल्ली जाकर इसे समझाना होगा. पोते को टिकट बनाने के लिए भी बोलकर भुखमरी, बेरोजगारी जैसे और आंकड़े एकत्र करने लगे. जैसे-जैसे उनके सामने सही तस्वीर आती गई, पारा सातवें आसमान पर पहुँचता गया.
पहुँच गए दिल्ली सांसद जी की क्लास लेने. गुरु जी के आने की खबर पाकर सांसद जी उन्हें ससम्मान घर ले आये. चाय-पानी पिए बिना ही शुरू हो गए. बोले-राजनीति करनी है तो कुछ पढ़ा-लिखा करो. तुम जहाँ से आते हो, उसी महाराष्ट्र से किसानों की ख़ुदकुशी की शुरुआत हुई है. कोई 25-26 साल पुरानी बात होगी. फिर आन्ध्र-प्रदेश से भी ऐसी घटनाएँ सामने आईं. लेकिन सरकारें स्वीकार नहीं करती थीं. लेकिन मीडिया ने सच का साथ नहीं छोड़ा. लिखती रही. आज यह जानकारी आम है, वह भी सरकारी दस्तावेजों के हवाले से. अब तो ख़ुदकुशी का दायरा कई राज्यों तक बढ़ गया है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की मानें तो अकेले वर्ष 2009 में 17 हजार से ज्यादा किसानों ने ख़ुदकुशी की. इनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के किसानों की संख्या ज्यादा थी. यह सिलसिला अभी भी रुका नहीं है. गुरु जी की बात चुपचाप सुन रहे सांसद जी ने अपने बयान के लिए माफ़ी मांगी और कहा कि सारी कारस्तानी मीडिया वालों की है. मेरे बयान को उन्होंने तोड़-मरोड़ के पेश किया. गुरु जी फिर भड़क गए. बोले-तुम नेता कौन से दूध के धुले हो. दिनभर झूठ की गठरी लिए घूमते हो. जनता को गुमराह करते हो. केवल अपने फायदे की बात सोचते हो. इस दौरान किसी भी कारण से अगर कोई विकास हो जाये तो वहाँ अपने नाम का पत्थर लगाने से नहीं चूकते हो.
जिस देश में आज भी छह हजार लोग भूख से मरते हों, उसमें भी ज्यादातर बच्चे. वहाँ की नेता-नगरी को ऐसे घटिया बयान कतई शोभा नहीं देते. अगर कुछ करना ही है तो ख़ुदकुशी रोकने की दिशा में काम करो, तुम्हारी सरकार है. और यह तभी रुकेगी जब सरकार और अफसर जमीनी सच स्वीकार करेंगे. यह हालत तब है जब देश में अन्न की कोई कमी नहीं है, अगर कोई कमी है तो केवल प्रबंधन की. तुम्हें पता होना चाहिए कि आज भी भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सोते हैं. भरोसा न हो तो इंटरनेशनल फ़ूड रिसर्च संस्थान की रिपोर्ट पढ़ लो. और यह भी जानना तुम्हारे लिए जरूरी है कि भूखे पेट सोने का यह रिकार्ड भारत के नाम ही दर्ज है. तो जहीलियत छोड़ो मौका मिला है, कुछ अच्छे काम करो. अन्यथा, अब जनता होशियार हो चुकी है. तुम जिस देश में रहते हो, वहाँ आये दिन चुनाव होते हैं. समझे या नहीं. मैं अपने किसी भी शिष्य से ऐसी उम्मीद नहीं करता.
सांसद जी के ट्विटर अकाउंट से ली गई फोटो-साभार |
पहुँच गए दिल्ली सांसद जी की क्लास लेने. गुरु जी के आने की खबर पाकर सांसद जी उन्हें ससम्मान घर ले आये. चाय-पानी पिए बिना ही शुरू हो गए. बोले-राजनीति करनी है तो कुछ पढ़ा-लिखा करो. तुम जहाँ से आते हो, उसी महाराष्ट्र से किसानों की ख़ुदकुशी की शुरुआत हुई है. कोई 25-26 साल पुरानी बात होगी. फिर आन्ध्र-प्रदेश से भी ऐसी घटनाएँ सामने आईं. लेकिन सरकारें स्वीकार नहीं करती थीं. लेकिन मीडिया ने सच का साथ नहीं छोड़ा. लिखती रही. आज यह जानकारी आम है, वह भी सरकारी दस्तावेजों के हवाले से. अब तो ख़ुदकुशी का दायरा कई राज्यों तक बढ़ गया है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की मानें तो अकेले वर्ष 2009 में 17 हजार से ज्यादा किसानों ने ख़ुदकुशी की. इनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के किसानों की संख्या ज्यादा थी. यह सिलसिला अभी भी रुका नहीं है. गुरु जी की बात चुपचाप सुन रहे सांसद जी ने अपने बयान के लिए माफ़ी मांगी और कहा कि सारी कारस्तानी मीडिया वालों की है. मेरे बयान को उन्होंने तोड़-मरोड़ के पेश किया. गुरु जी फिर भड़क गए. बोले-तुम नेता कौन से दूध के धुले हो. दिनभर झूठ की गठरी लिए घूमते हो. जनता को गुमराह करते हो. केवल अपने फायदे की बात सोचते हो. इस दौरान किसी भी कारण से अगर कोई विकास हो जाये तो वहाँ अपने नाम का पत्थर लगाने से नहीं चूकते हो.
जिस देश में आज भी छह हजार लोग भूख से मरते हों, उसमें भी ज्यादातर बच्चे. वहाँ की नेता-नगरी को ऐसे घटिया बयान कतई शोभा नहीं देते. अगर कुछ करना ही है तो ख़ुदकुशी रोकने की दिशा में काम करो, तुम्हारी सरकार है. और यह तभी रुकेगी जब सरकार और अफसर जमीनी सच स्वीकार करेंगे. यह हालत तब है जब देश में अन्न की कोई कमी नहीं है, अगर कोई कमी है तो केवल प्रबंधन की. तुम्हें पता होना चाहिए कि आज भी भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सोते हैं. भरोसा न हो तो इंटरनेशनल फ़ूड रिसर्च संस्थान की रिपोर्ट पढ़ लो. और यह भी जानना तुम्हारे लिए जरूरी है कि भूखे पेट सोने का यह रिकार्ड भारत के नाम ही दर्ज है. तो जहीलियत छोड़ो मौका मिला है, कुछ अच्छे काम करो. अन्यथा, अब जनता होशियार हो चुकी है. तुम जिस देश में रहते हो, वहाँ आये दिन चुनाव होते हैं. समझे या नहीं. मैं अपने किसी भी शिष्य से ऐसी उम्मीद नहीं करता.
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