का गुरु, कौनो जुगाड़ बा का

अपने देश में जुगाड़ के सहारे बहुतेरे काम हो जाते हैं. जैसे छुटभैये नेता की मदद से पहले नाले के किनारे पड़ी सरकारी जमीन पर टट्टर घेरो. गायब हो जाओ. कुछ दिन बाद वहीं एक छप्पर डाल दो. फिर रहने लगो. कुछ दिन बाद राशन कार्ड, वोटर कार्ड, टेलीफोन, इन्टरनेट सब लगवाओ. रहने लगो घर-परिवार के साथ. फिर कुछ साल बाद आप को हटा दिया जाएगा. तब तक छोटा नेता बड़ा हो चुका होगा. मतलब एमपी-एमएलए बन चुका होगा. फिर धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन, लाठीचार्ज...बाद में सरकार की ओर से घोषणा, कि अमुक झुग्गी के लोगों को अमुक जगह बसाया जाएगा. उन्हें पांच रुपये रोज पर पक्के मकान मिलने की घोषणा भी करने से परहेज नहीं करती हमारी नेतानगरी.
नियम कानून का मखौल उडाता यह जुगाड़ (साभार) 

दिल्ली हो या मुंबई. ये झुग्गियां नेताओं को बहुत भाती हैं. क्योंकि वहाँ से थोक में वोट मिलते हैं. हर छोटे-बड़े शहर से इन झुग्गियों का रिश्ता है. और इन्हें बसाने का काम नेता ही करते हैं. और इसी जुगाड़ से ये लोग विधायक/मंत्री/सांसद बन जाते हैं और झुग्गी वाले पक्के मकानों के मालिक. यहाँ लखनऊ में आये दिन अख़बारों में ख़बरें छप रही हैं, कि अमुक व्यक्ति पैसे जमा करने के बावजूद 20 साल से अपना भूखंड पाने के लिए अफसरों के चक्कर लगा रहा है. आज ही खबर छपी है कि भूखंड पाने के लिए कोई अदालत पहुंचा तो जल्दी में प्राधिकरण ने एक पार्क में ही प्लाट काट दिया. अब अदालत ने यह प्लाट देने से यह कहकर मना कर दिया है कि पार्क की जमीन आप कैसे किसी को घर बनाने के लिए दे सकते हैं. अफसर अब इसका तोड़ निकालने पर लगे हैं, कम से कम मुझे पूरा भरोसा है कि वे अदालत के आदेश के सन्दर्भ में कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लेंगे. पैसे देने के बावजूद 20-20 साल से भटकने वाले लोग अगर किसी सभासद को कुछ पैसे देकर उपकृत कर देते तो उसने अब तक कहीं न कही सरकारी जमीन पर कोठी बनवा देता. लेकिन इस तरह के जुगाड़ का लाभ पाने के लिए भी आप में हिम्मत होनी चाहिए. सबके पास नहीं है इतनी हिम्मत. नेताओं की गाली-जुगाली, पुलिस की लाठी, आन्दोलन करने की हिम्मत, हर महीने कुछ न कुछ रकम खर्च करने का माद्दा भी होना चाहिए, जो सबमें नहीं है. एनजीओ चलने वाले लोगों को भी ये झुग्गियां बहुत भाती हैं. क्योंकि यहाँ कुछ भी करो, सबकी रिपोर्ट खुद से तैयार करो और फिर भेज दो फंड देने वाली एजेंसी को. ऑडिट रिपोर्ट देने के लिए सीए साहेबान तैयार ही हैं. 
ये लीजिए, एक और नमूना जुगाड़ का (साभार)

पश्चिम उत्तर प्रदेश में स्कूटर/मोटर साइकिल के इंजन पर ठेले का निर्माण और खुलेआम संचालन. एक पम्पसेट पर पूरा का पूरा परिवहन का साधन तैयार. अब चाहे सवारी यहाँ से वहां पहुँचाओ या फिर अनाज लेकर मंडी जाओ. गन्ना चीनी मिल पहुँचाओ. बीसियों साल से ये जुगाड़ का काम पूरे देश में चल रहा है, लेकिन किसी को नहीं दिखता. जैसे ही दिखता है, इसे एक नंबर में करने की दौड़ शुरू हो जाती है. अभी उत्तर प्रदेश में ऐसे ही दो जुगाड़ की खबरें अख़बारों में दिखीं. एक-परिवहन विभाग के दफ्तरों पर वर्षों से काबिज दलाल अब, दलाल नहीं कहे जाएंगे. उन्हें बाकायदा लाइसेंस मिलेगा और फीस भी तय होगी. सरकार इसके लिए प्रस्ताव लाने जा रही है. एक और रोचक बात सामने आई है. जब नेताओं के कारों का काफिला कहीं से निकलता है तो प्रायः आम आदमी को रोक दिया जाता है. खबरों के मुताबिक पुलिस ने इसका तोड़ तलाश लिया है. अब वीवीआईपी मूवमेंट पर बत्ती में ही खेल कर दिया जाएगा. जैसे ही नेताजी को आना होगा, उस रास्ते के सभी चौराहों पर रेड लाइट जल जाएगी. पब्लिक को लगेगा कि अभी उसे नहीं जाना है और अतिमहत्वपूर्ण शख्सियतें आराम से निकल जाएंगी. हुआ न जुगाड़. पर, इन अफसरों को कौन समझाए कि पब्लिक इतनी मूर्ख तो नहीं, जितनी आप समझते हो. आप तो नेताओं को अपने हिसाब से टहलाओ और उनके हिसाब से टहलो. मुझे याद आता है अपना कानपुर प्रवास. वहाँ सेल्स टैक्स विभाग में ढेरों सेवानिवृत कर्मचारी पूरा काम करते थे. संभव है कि वे आज भी हों, पर उस समय तो उनके जलवे थे. बिना उनकी अनुमति, कोई काम नहीं होता था. अफसरों को कहना होता था कि स्टाफ बहुत कम है. ये लोग काम जानते हैं, और कम पैसे में उपलब्ध हैं. इसलिए इन्हें अपने साथ जोड़ना उचित रहता है.
इनसे मिलिए-जुगाड़ से ही बाढ़ से निपट ले रहे (साभार)

शायद यह भी एक कारण है कि सारी दुनिया भारत की बड़ी इज्जत करती है. क्योंकि हम हिन्दुस्तानी असल काम तो कर ही लेते हैं, जुगाड़ में भी हमारा कोई सानी नहीं है. यहाँ रिक्शावाला भी चलते-फिरते आप को सिरदर्द की दवाई आसानी से बता देता है. जो काम दस साल मेडिकल कालेज में गुजारने के बाद डॉक्टर करते हैं, वही दांत उखाड़ने/लगाने का काम अपने देश में कहीं भी फुटपाथ पर कराया जा सकता है. शर्तिया इलाज करने वालों के बड़े-बड़े बोर्ड हर शहर में घुसते हुए दिखते हैं. रेल से सफ़र करते हुए ये सभी जुगाड़ी दीवारों पर नुमाया होते हैं. धन्य है हमारा देश और यहाँ के जुगाड़ी.

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