गणेश शंकर विद्यार्थी लेख-दो / भीषण अत्याचार
ह्रदय काँप उठता है, और रोंये खड़े हो जाते हैं, जब हम उस भयंकर अत्याचार के समाचारों को सुनते हैं, जो हमारे भाइयों पर दक्षिण अफ्रीका में इस समय हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने सभ्यता, और मनुष्यता से नमस्कार कर लिया है. संसार के सभ्य राष्ट्रों के उन सारे साधारण भावों से, जिनसे एक सभ्य राष्ट्र, सभ्य कहला सकता है, अब उसे कोई सरोकार नहीं. उदारता, सज्जनता और सत्यता से उसने आँखे फेर ली हैं. अत्यंत नीचता और पशुता पर वह उतर आई है. अनाथों की बेबसी और स्त्रियों की लाचारी उसके ह्रदय को जरा भी नहीं हिलाती. मनुष्य-और वे भी इतने सदाचारी, वीर, और सत्यप्रतिज्ञ, कि जिनके ऊपर संसार का कोई सभ्य से सभ्य देश गर्व कर सकता, और जिनके पैरों की धूल तक माथे पर चढ़ने के योग्य दक्षिण अफ्रीका के मनुष्य-शरीर पाने वाले, लेकिन पशु ह्रदय रखने वाले आदमी नहीं है, कैदखाने में ठूंसे जाते हैं. उन पर बेहिसाब कोड़े लगाये जाते हैं.
आज्ञा है कि गोली तक मार दो. और यह किस लिए? इसलिए नहीं, कि इन भले आदमियों ने कोई जुर्म किया है, इसलिए नहीं, कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के गोर निवासियों की गठरी काटी है, इसलिए भी नहीं कि वे चाहते हैं कि उन्हें वही सब हक़ मिले जो गोरों को प्राप्त है, लेकिन केवल इसीलिए कि वे चाहते हैं, और उन्होंने इसको करा लेने के लिए सच्चाई, नेक-नियती और शांति से अपने ह्रदय में दृढ़ निश्चय कर लिया है, कि वे भी दक्षिणी अफ्रीका में मनुष्य समझे जाएँ. और इसीलिए सब अत्याचार! यदि पाश्चात्य देश के किसी भी एक आदमी पर इस तरह के अत्याचार होते, तो आज संसार रण-हुंकारों से गूँज उठता, उस अत्याचार की भयंकर कहानियां संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक फ़ैल जाती और अंत में अत्याचारी को वह दंड मिलता, कि वह अपनी सारी उद्दंडता सदा के लिए भूल जाता. लेकिन, भारत वासियों की विपत्ति और सहनशीलता की भयंकर से भयंकर सच्ची बातों से ही नहीं किन्तु उस भारतीय की शोक-जनक मृत्यु तक से भी, जो दक्षिणी अफ्रीका के ह्रदय में सदा याद रहेगी-इंगलैंड ऐसे उदार और कर्तव्यशील देश के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. मनुष्यता की देवी क्रूरता के इस भयंकर रूप और उसके मुकाबले में सभ्य समाज की इस कमजोरी से चकित है.
लेकिन, ऐसे अवसर पर जिनका आगे बढ़ने का कर्तव्य है, उन्हें उगाना ही पड़ेगा. बहुत हो चुका, अब इम्पीरियल सरकार को अपने कर्तव्य और बल की सुध आना चाहिए. भारतवासी अफ्रीका आप से नहीं गए थे. इम्पीरियल सरकार ने भारत सरकार को मजबूर करके उन्हें वहाँ भेजवाया था. आज उनकी यह दुर्दशा हो रही है, और ऐसे समय पर, हमारी नजर स्वभावतः इम्पीरियल सरकार की तरफ उठती है. बोअर युद्ध हुआ और कहा गया कि उसका एक कारण यह भी था कि ट्रांसवाल वाले इंगलैंड की हिन्दुस्तानी प्रजा पर अत्याचार करते थे. लेकिन आज हम देखते हैं कि उस गवर्नमेंट से जो उस समय ट्रांसवाल में थी, वर्तमान गवर्नमेंट जो इंगलैंड के अधीन है हिन्दुस्तानियों पर कहीं अधिक जुल्म कर रही है. और इंगलैंड, जो उस समय हिन्दुस्तानियों के लिए हजारों आदमियों और करोड़ों रुपये का दांव अड़ने के लिए तैयार था, इस समय बड़ी ही शांति से चुपचाप बैठा है.
दक्षिणी अफ्रीका के हिन्दुस्तानियों ने समय पर इम्पीरियल सरकार की अच्छी सहायता की है. हजारों आदमियों को साथ लेकर मि. गाँधी ने युद्ध के समय अंग्रेजी सेना के अस्पतालों का काम किया और आज उस राज-भक्ति का बदला यह मिल रहा है, कि वे अपने वैसे ही सच्चे साथियों के साथ जेल में ठूंसे गए हैं, और उन्हें खूब सताया जा रहा है. ऐसे समय पर इंगलैंड का, जिसने अपनी उदारता से, संसार से गुलामी की प्रथा उठा और उठवा दी, जो सदा अत्याचार और अनाचार का विरोधी रहा है, और जिसके हाथ में आज भारत का शासन है, चुप बैठा रहना बड़ी ही लज्जा और भीरुता की बात है. सम्राट हमें समता का सन्देश देते हैं, और इंगलैंड, अपनी इस क्रूर चुप्पी से हमारे ऊपर अत्याचार होने देता है, यह बात उसका गौरव नहीं बढ़ा सकती. यदि इंगलैंड अपने बिगड़े हुए बच्चों को होश में लाने, और कम से कम, अपने दूसरे बच्चों पर उन्हें अत्याचार न करने देने का पूरा नैतिक साहस नहीं रखता, और हमें दुःख से कहना पड़ता है, कि अब उसके उन गुणों का जिनसे वह संसार के राष्ट्रों में सर्वश्रेष्ठ गिना जाता है, ह्रास हो चला है और यह बात उसके भविष्य के लिए अच्छी नहीं.
भारत सरकार भी चेते. देश में दक्षिणी अफ्रीका के उस कोयले की जरूरत नहीं जिस पर हमें अपने भाइयों के खून के छींटे नजर आवें. हमारे देश का रूपया उन नर-पिशाचों की जेबों में न जाय, जो हमारे भाइयों का गला इस बेदर्दी के साथ घोंट रहे हैं. यदि, भारत-सरकार दक्षिणी अफ्रीका में, हमारे भाइयों की इस संग्राम में, आर्थिक सहायता नहीं कर सकती-जो उसे करना चाहिए, जबकि वह देखती है कि उसकी प्रजा पर सरासर अत्याचार हो रहा है-और साथ ही यदि वह अपनी इस कमजोरी का कोई भी इलाज नहीं कर पाती, तो उसका परम कर्तव्य है कि वह हमारे सारे भाइयों को अपने खर्च से, दक्षिण अफ्रीका से बुला ले. जिस तरह अपने 31 करोड़ बच्चों को वह पालती है, उसी तरह हमारी माता अपने इन बच्चों को भी किसी न किसी तरह पालेगी. हमें दक्षिणी अफ्रीका से नाता रखने की जरूरत नहीं. वहाँ की भूमि वहाँ वालों को मुबारक हो. वहाँ के जो लोग यहाँ हों, चाहे सिविल सर्विस में, या और तरह से, उन सबको उनकी पवित्र भूमि में भेज दिया जाय. साथ ही कुलियों की भर्ती का कानून, जो इम्पीरियल सरकार की धींगाधींगी का फल है, रद्द कर दिया जाय. हमारे भाई कुली बनकर खूब आनंद उठा चुके. कुली चाहने वाले लोग जहाँ से चाहें, तहां से कुली मंगावें. उदार और नीतिज्ञ लार्ड हार्डिंज का शासनकाल हमारे लिए चिर-स्मरणीय होगा, यदि भारत सरकार ने अपने इन दो कर्तव्यों में से किसी एक को भी पूरा किया.
नोट-प्रताप अख़बार में श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी का यह सम्पादकीय लेख 22 नवम्बर 1913 को प्रकाशित हुआ था. (साभार )
गणेश शंकर विद्यार्थी जी |
लेकिन, ऐसे अवसर पर जिनका आगे बढ़ने का कर्तव्य है, उन्हें उगाना ही पड़ेगा. बहुत हो चुका, अब इम्पीरियल सरकार को अपने कर्तव्य और बल की सुध आना चाहिए. भारतवासी अफ्रीका आप से नहीं गए थे. इम्पीरियल सरकार ने भारत सरकार को मजबूर करके उन्हें वहाँ भेजवाया था. आज उनकी यह दुर्दशा हो रही है, और ऐसे समय पर, हमारी नजर स्वभावतः इम्पीरियल सरकार की तरफ उठती है. बोअर युद्ध हुआ और कहा गया कि उसका एक कारण यह भी था कि ट्रांसवाल वाले इंगलैंड की हिन्दुस्तानी प्रजा पर अत्याचार करते थे. लेकिन आज हम देखते हैं कि उस गवर्नमेंट से जो उस समय ट्रांसवाल में थी, वर्तमान गवर्नमेंट जो इंगलैंड के अधीन है हिन्दुस्तानियों पर कहीं अधिक जुल्म कर रही है. और इंगलैंड, जो उस समय हिन्दुस्तानियों के लिए हजारों आदमियों और करोड़ों रुपये का दांव अड़ने के लिए तैयार था, इस समय बड़ी ही शांति से चुपचाप बैठा है.
दक्षिणी अफ्रीका के हिन्दुस्तानियों ने समय पर इम्पीरियल सरकार की अच्छी सहायता की है. हजारों आदमियों को साथ लेकर मि. गाँधी ने युद्ध के समय अंग्रेजी सेना के अस्पतालों का काम किया और आज उस राज-भक्ति का बदला यह मिल रहा है, कि वे अपने वैसे ही सच्चे साथियों के साथ जेल में ठूंसे गए हैं, और उन्हें खूब सताया जा रहा है. ऐसे समय पर इंगलैंड का, जिसने अपनी उदारता से, संसार से गुलामी की प्रथा उठा और उठवा दी, जो सदा अत्याचार और अनाचार का विरोधी रहा है, और जिसके हाथ में आज भारत का शासन है, चुप बैठा रहना बड़ी ही लज्जा और भीरुता की बात है. सम्राट हमें समता का सन्देश देते हैं, और इंगलैंड, अपनी इस क्रूर चुप्पी से हमारे ऊपर अत्याचार होने देता है, यह बात उसका गौरव नहीं बढ़ा सकती. यदि इंगलैंड अपने बिगड़े हुए बच्चों को होश में लाने, और कम से कम, अपने दूसरे बच्चों पर उन्हें अत्याचार न करने देने का पूरा नैतिक साहस नहीं रखता, और हमें दुःख से कहना पड़ता है, कि अब उसके उन गुणों का जिनसे वह संसार के राष्ट्रों में सर्वश्रेष्ठ गिना जाता है, ह्रास हो चला है और यह बात उसके भविष्य के लिए अच्छी नहीं.
भारत सरकार भी चेते. देश में दक्षिणी अफ्रीका के उस कोयले की जरूरत नहीं जिस पर हमें अपने भाइयों के खून के छींटे नजर आवें. हमारे देश का रूपया उन नर-पिशाचों की जेबों में न जाय, जो हमारे भाइयों का गला इस बेदर्दी के साथ घोंट रहे हैं. यदि, भारत-सरकार दक्षिणी अफ्रीका में, हमारे भाइयों की इस संग्राम में, आर्थिक सहायता नहीं कर सकती-जो उसे करना चाहिए, जबकि वह देखती है कि उसकी प्रजा पर सरासर अत्याचार हो रहा है-और साथ ही यदि वह अपनी इस कमजोरी का कोई भी इलाज नहीं कर पाती, तो उसका परम कर्तव्य है कि वह हमारे सारे भाइयों को अपने खर्च से, दक्षिण अफ्रीका से बुला ले. जिस तरह अपने 31 करोड़ बच्चों को वह पालती है, उसी तरह हमारी माता अपने इन बच्चों को भी किसी न किसी तरह पालेगी. हमें दक्षिणी अफ्रीका से नाता रखने की जरूरत नहीं. वहाँ की भूमि वहाँ वालों को मुबारक हो. वहाँ के जो लोग यहाँ हों, चाहे सिविल सर्विस में, या और तरह से, उन सबको उनकी पवित्र भूमि में भेज दिया जाय. साथ ही कुलियों की भर्ती का कानून, जो इम्पीरियल सरकार की धींगाधींगी का फल है, रद्द कर दिया जाय. हमारे भाई कुली बनकर खूब आनंद उठा चुके. कुली चाहने वाले लोग जहाँ से चाहें, तहां से कुली मंगावें. उदार और नीतिज्ञ लार्ड हार्डिंज का शासनकाल हमारे लिए चिर-स्मरणीय होगा, यदि भारत सरकार ने अपने इन दो कर्तव्यों में से किसी एक को भी पूरा किया.
नोट-प्रताप अख़बार में श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी का यह सम्पादकीय लेख 22 नवम्बर 1913 को प्रकाशित हुआ था. (साभार )
KYA YE BHAAW BHARAT -PAAK ( BANGLADESH SAHIT ) BANTWARE KE BAAD PAK-BANGLADESH MEIN RAH RAHE HINDUON KE NARSANHAR PER BHI LAAGU HOTI HAI ????????????SOCHNE KA V ISHAY HAI ? QUOTE..........यदि, भारत-सरकार दक्षिणी अफ्रीका में, हमारे भाइयों की इस संग्राम में, आर्थिक सहायता नहीं कर सकती-जो उसे करना चाहिए, जबकि वह देखती है कि उसकी प्रजा पर सरासर अत्याचार हो रहा है-और साथ ही यदि वह अपनी इस कमजोरी का कोई भी इलाज नहीं कर पाती, तो उसका परम कर्तव्य है कि वह हमारे सारे भाइयों को अपने खर्च से, दक्षिण अफ्रीका से बुला ले. जिस तरह अपने 31 करोड़ बच्चों को वह पालती है, उसी तरह हमारी माता अपने इन बच्चों को भी किसी न किसी तरह पालेगी. हमें दक्षिणी अफ्रीका से नाता रखने की जरूरत नहीं. वहाँ की भूमि वहाँ वालों को मुबारक हो. वहाँ के जो लोग यहाँ हों, चाहे सिविल सर्विस में, या और तरह से, उन सबको उनकी पवित्र भूमि में भेज दिया जाय.
ReplyDeleteये लाइनें विद्यार्थी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ उनके राज में लिखी थी. ललकारा था उन्हें मुद्गल साहब. आज अपनों की सरकारों में भी दम नहीं है और न ही हमारी पत्रकारिता में कि हम ऐसे मुद्दों पर अपनी सरकार को ललकार सकें. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि पत्रकारिता ख़त्म हो गई है, लेकिन सरकारों को ललकारने वाली पत्रकारिता निश्चित तौर पर अब नहीं हो रही. धन्यबाद मुद्गल साहब पोस्ट पढ़ने और उससे भी बड़ा वाला धन्यबाद कमेन्ट बॉक्स में लिखने के लिए. यह सिलसिला बनाये रखने का अनुरोध है...
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