अयोध्या में मंदिर निर्माण की बातें अनायास नहीं
अयोध्या
में मंदिर बनना चाहिए. एक हिन्दू और अयोध्यावासी होने के नाते मैं भी यही चाहता हूँ.
मेरे अयोध्या के मुस्लिम साथी ठीक वैसे ही मस्जिद चाहते हैं, जैसे मैं मंदिर. पर, एक
पढ़ा-लिखा इंसान होने के कारण लगता है कि मेरे सोचने और जमीनी हकीकत में नदी के दो
पाटों जैसा फासला है. खाली मेरे या किसी समूह के सोचने मात्र से तो ऐसा बिलकुल
नहीं होगा. हम लोकतंत्र में विश्वास करते हैं. हमारा अपना संविधान है. उसी के
अनुरूप हम सबको चलना है. जो लोग संविधान, कानून के हिसाब से नहीं चलते, उन्हें
कानून अपराधी करार देता है. इस सच को जानने के बावजूद संतों का समूह, विश्व हिन्दू
परिषद् और गाहे-बगाहे मंदिर समर्थक यह बात उठाते रहते हैं कि अमुक तारीख से मंदिर
निर्माण शुरू हो जाएगा.
अयोध्या का प्रतीकात्मक चित्र -साभार |
जब
हम ऐसा कहते हुए सुनते हैं, पढ़ते हैं, तो बरबस सूत न कपास, जुलाहन में लठ्ठमलठ्ठ
वाली देशी कहावत याद आ जाती है. और यह भी पता चलने लगता है कि चुनाव आने वाले हैं.
सभी जानते हैं कि मामला अदालत में है. और जब तक वहां से फैसला नहीं आ जाता, तब तक
अयोध्या में विवादित परिसर में एक ईंट रखना किसी के बस में नहीं. भले ही केंद्र
में बीजेपी की सरकार है, फिर भी यह संभव नहीं क्योंकि राज्यसभा में बहुमत नहीं है
उसके पास. लोग यह भी जानते हैं कि वह भी हो जाये तब भी इस देश के राजनीतिक हालत ऐसे
नहीं हैं कि कोई सरकार इस गंभीर मसले में अपने स्तर पर कोई भी पहल करेगी. इस सच के
जानने के बावजूद कोई प्रधानमंत्री मोदी को ललकार रहा है कि वे मंदिर निर्माण के
तारीख की घोषणा कर दें. जैसे प्रधानमंत्री के रूप में वे कानून से ऊपर हैं. मंदिर
निर्माण की छिटपुट मांग के बीच यह भी सुनाई पड़ रहा है कि अपने जमाने के फायर
ब्रांड नेता कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल पद से इस्तीफ़ा दिलाकर बीजेपी
उत्तर प्रदेश चुनाव की कमान देने वाली है. उनका साथ देंगी केन्द्रीय मंत्री स्मृति
ईरानी. अगर ऐसा होता है तो तय है कि बीजेपी फिर से मंदिर मुद्दे को गरम करेगी.
क्योंकि उसे भी जातिगत वोट चाहिए. राज्य के जो हालात हैं उसमें वोटों का जबरदस्त
बंटवारा होना है. ध्रुवीकरण के सहारे ही बीजेपी सत्ता वापस पा सकती है, ऐसा बीजेपी
नेता सोचते हैं. इस सूरत में संभव है कि देश में मंदिर-मस्जिद के नाम पर नया बखेड़ा
भी खड़ा हो जाये. हाल ही में आये सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का बयान भी अहम्
है. वे उन दिनों राज्य के मुख्यमंत्री थे. अब एक बार फिर से साफ किया कि किन
हालातों में उन्हें गोली चलवानी पड़ी. उन्होंने अफ़सोस भी जताया और कहा कि कोई
विकल्प बचा ही नहीं था.
यह
सब देखते हुए मुझे अपनी पुरानी अयोध्या याद आती है. जहाँ शांति थी. रामाधुनि थी.
एक चैन था. लईया, रामदाना, माला, कंठी बेचकर लोग जीवन-यापन करते. थे. इन दिनों
बीमार चल रहे बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी से भी सबसे मेलजोल था. वे
मंदिरों में आते-जाते थे. राम मंदिर के प्रमुख समर्थक स्वर्गीय राम चन्द्र दास
परमहंस से भी उनका अच्छा याराना था. लेकिन जैसे ही मंदिर मुद्दा उठा, सब कुछ
बेपटरी हो गया. मैं कालेज में था उन दिनों. अयोध्या में रहता था. आज जिस परिसर की
सुरक्षा के लिए संगीनें लगी हैं. भारी-भरकम खर्च हो रहा है. भारत सरकार से लेकर
राज्य सरकार तक की जान हरदम सांसत में है. उस रामजन्मभूमि या बाबरी मस्जिद परिसर
में सुरक्षा के नाम पर एक पुलिस चौकी थी. एक हेड कांस्टेबल और तीन सिपाही तैनात
होते. उन्हें वर्दी पहने कोई तभी देखता जब किसी अधिकारी का दौरा तय होता. प्राय:
बुजुर्ग पुलिस कर्मी यहाँ तैनात किये जाते. उस इमारत के एक छोटे से गेट पर जंग लगा
ताला होता. जिसकी मर्जी आये, जाए, भरोसा करिए कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था. न
हिन्दू और न मुसलमान. हाँ, मुकदमा जरूर अदालत में चल रहा था. जो आज भी चल ही रहा
है. फैसला कब आएगा. किसी को भी नहीं. जब मंदिर मुद्दे ने जोर पकड़ा तो उसी अयोध्या
की हर गली में सुरक्षा बल थे. बड़ी मुश्किल से अयोध्या एक बार फिर से पटरी पर आने
का प्रयास कर रही है. लेकिन संगठनों, राजनीतिक दलों की सक्रियता बता रही है कि
अयोध्या में एक बार फिर से कुछ होने वाला है. जब वहाँ होगा तो देश कैसे शांत रह
सकता है. मैं तो भगवान राम और अल्लाह से गुजारिश करूंगा कि दोनों पक्ष अदालत के
फैसले का इन्तजार करें. और बहुत जल्दी हो तो दोनों ही पक्ष जाएँ और अदालत से जल्दी
सुनवाई की अपील करें. माना कि उत्तर प्रदेश का चुनाव किसी भी दल के लिए निश्चित
कठिन है लेकिन वोट के लिए देश को दंगों के आग में झोंकना तो उचित नहीं कहा जा
सकता.
...जितना परिवर्तन से संशय व भय की स्थिति रहती है उतना ही यथास्थितिवाद से भी। कहने को तो आप पत्रकार हैं...लेकिन मुझे आपके विचार पढ़ने के बाद प्रेमचंद की उक्ति याद आती है...क्या बिगाड़ की डर से ईमान की बात नहीं कहोगे?
ReplyDeleteबहुत धन्यबाद आप का मान्यवर. आप ने पढ़ा. इस पर दो शब्द लिखा. मैं जानता हूँ कि पत्रकारिता आज सवालों के घेरे में है लेकिन अभी भी सच जिन्दा है और सच कहने वाले भी..मैं जितना आप को पढ़कर समझ पाया हूँ, आप एक बेहद संवेदनशील इंसान हैं और सच्चे पाठक भी. मैं आप को सलाम करता हूँ.
ReplyDeleteवास्तव में लेखन शैली बहुत रुचिकर और व्याकरण की कसौटी पर खरी है | आपके लेख दिल से बात करते हैं | नियम कानून का हवाला देते हुए मर्यादित भाषा में अपनी बात का प्रस्तुतिकरण आपकी पहचान है | बहुत महान हैं दादा जी आप ?
ReplyDeleteधन्यवाद सुधीर जी. आप पढ़ते रहें. मेरा प्रयास होगा कि मैं कुछ न कुछ नया पढवाता रहूँ.
ReplyDeleteभाई साहब प्रमाण,
ReplyDeleteआपकी लेखनी का कमाल मैं लगभग ढाई दशक पहले से जानता हूं। जैसी उम्मीद थी। वैसी ही लेखनी में धार अभी भी बाकी है। शानदार खबर है।
बहुत धन्यबाद राकेश, पढ़ने और पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए. पर, ध्यान देना जरूरी है कि उम्र कुछ भी हो लेकिन कलम बूढ़ी नहीं होती. इसलिए तजुर्बे के साथ लेखनी की धार और तेज होनी चाहिए. इसीलिए मैं इन दिनों पत्रकार शिरोमणि गणेश शंकर विद्यार्थी जी की सम्पादकीय भी इसी ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ. उसे भी पढ़िए. आप को लगेगा कि विद्यार्थी जी ने जो कुछ अंग्रेजों के राज में उनके खिलाफ लिख दिया, आज किसी बड़े पत्रकार के लिए लिखना मुश्किल है. खुश रहिये. जीवन में तरक्की भी करते रहिये. आभार आप का फिर से
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