लेफ्ट-राइट के बीच फंसा देश

लेफ्ट-राइट-लेफ्ट. इन शब्दों से मेरा सामना या यूं कहें कि किसी भी नौजवान का सामना पहली दफा एनसीसी कैडेट के रूप में होता आया है. लेकिन इस दफा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में मैं इसे महसूस कर रहा हूँ. जिस तरह परेड के दौरान हमारी हरकतें छिप जाती थीं ठीक उसी तरह एक मुद्दे को ढकने-तोपने के चौतरफा प्रयास होते दिख रहे हैं. इसके पहले मैं कुछ भी लिखूं, साफ करना चाहूँगा कि मेरा किसी भी दल, विचारधारा से कोई ताल्लुक नहीं है. मैं केवल और केवल हिन्दुस्तानी नागरिक हूँ और खुद को पढ़ा-लिखा होने का दावा भी करता हूँ. इसलिए जो कुछ भी चल रहा है, उस पर अपनी राय रखने का दुस्साहस कर रहा हूँ. इसे ठीक वैसे ही समझा जाए, जैसा मैं लिख रहा हूँ.बाकी,  इधर-उधर समझने वालों का अपना विवेक है. जो चाहें समझें. उसमें मैं कुछ कर भी नहीं सकता. बस अखबार, टीवी चैनल्स पढ़-देखकर केवल कन्फ्यूजन की स्थिति है.

इस नाचीज को एक बात यह नहीं समझ आ रही कि जब देश में कानून है. अदालतें हैं. हम यह दावा करने से नहीं चूकते कि हमारा भारत के संविधान और न्यायपालिका में पूरा भरोसा है. फिर जेएनयू मसले पर इतनी चिल्ल-पों क्यों मची हुई है. वह चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी. वामदल हों या फिर देश का आम आदमी. अरे भाई, छोड़ दीजिये न व्यवस्था के ऊपर. और सत्य मानिये कि वह न्याय करेगा. मैं यह भी मानता हूँ कि जेएनयू में जो कुछ भी हुआ, नहीं होना चाहिए. मैं अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ. पर, यह भी सही है कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे नहीं लगने चाहिए. हर घर में अफजल पैदा करने की बात नहीं होनी चाहिए. कड़ी कानूनी परीक्षा के बाद अफजल को अदालत ने सजा सुनाई थी. वह भी कई बरस हो गए. अब इस पर इस तरह का बहस, मुबाहिसा ठीक नहीं. बाकी आप घेरिये  अपनी सरकारों को. मुद्दों पर विचार-विमर्श करो. रोका किसने है. लेकिन बीते तीन-चार दिनों में इस मसले को इतना उलझा दिया गया है कि देश कन्फ्यूज है कि सही क्या है? कन्हैया उसके समर्थक, एबीवीपी, पुलिस, केंद्र सरकार, जेएनयू, कांग्रेस, वामदल? यह हालत इसलिए कि सब के सब खुद को केवल देशभक्त साबित करने पर तुले तो हुए हैं लेकिन हैं या नहीं, यह शायद वे भी नहीं जानते. कन्हैया के समर्थन और विरोध में जिस तरह के भांति-भांति के वीडियो सामने आ रहे हैं, आम जनता तो  कन्फ्यूज ही रहेगी न. सारे टेलीविजन चैनल भी इस मुद्दे पर कुछ लोगों को लेकर भिड़े हुए हैं. मुझे लगता है यहाँ भी सबका अपना-अपना हिसाब है. सबने इस मसले को अपने तरीके से पढ़ा और चर्चा की है और करते ही जा रहे हैं.
जेएनयू  या ऐसे किसी भी विश्वविद्यालय में ढेरों चर्चाएँ होती हैं, होनी भी चाहिए लेकिन नियम-कानून के दायरे में ही. अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब कतई नहीं कि आप देश के विरोध में ही माइक लगाकर शुरू हो जाएँ. यह ठीक नहीं. ऐसे में हमें चाहिए कि इस मुद्दे पर बहस कम हो तथ्यों पर आधारित बातें ज्यादा हों. कानून को अपना काम करने दें. अगर आप वाकई न्यायपालिका में भरोसा करते हैं तो उस पर भी छोड़ें. इसे अपनी परिभाषा नहीं दें. जब फैसला आप के हक में आये तो न्यायपालिका पर भरोसा जता दें और खिलाफ आये तो कहें कि कुछ तो गड़बड़ है. और है तो भी कोई दिक्कत नहीं. अपना कानून इतनी लिबर्टी देता है कि आप निचली अदालत से लेकर उच्च अदालत तक मामले को लेकर जा सकते हैं. फांसी जैसी सजा में भी दया याचिका की व्यवस्था है. ऐसा केवल लोकतंत्र में ही संभव है. और कहीं नहीं. आज भी ढेरों की संख्या में फांसी की सजा पाए लोग दया याचिका लिए राष्ट्रपति के दर पर लाइन लगाये हुए हैं. ये मामले एक व्यवस्था के तहत निपटाए जाते हैं. फिर इस मसले को लेकर इतनी बातें हो रही हैं जैसे देश में अब कोई समस्या है ही नहीं. अरे भाई चर्चा करनी है तो बेरोजगारी पर करो, भुखमरी पर करो, खेती-किसानी पर करो, बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर करो, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं पर करो, स्वस्थ भारत पर करो, माँ-बहन-बेटियों के सामान पर करो, देश की तरक्की पर करो, विदेश नीति पर करो, उद्योग धंधों पर करो, अन्य सुधारों पर चर्चा करो..मुद्दों की तो कोई कमी है नहीं अपने देश में. आखिर हम, विकासशील भारत हैं, विकसित नहीं.

Comments

  1. SAHI KAHA SIR, MAGAR PRASHN HAI KI KISE KISPER CHHODNA HAI ? CONGRESS TO SATTA MEIN HI NAHIN HAI ? DESH AUR DELHI RAJYA KEE KANOON VYAVASTHA BJP KE HAATH MEIN HAI ! AB USKE ACTION PER YADI KOI PROPAGANDA KAREGA TO BJP JISKE PAAS SATTA HAI KYONKI PEECHHE RAHEGI ! YE TO SARVAMAANYA SWIKRAAYA TATHYA HAI KI MEDIA AUR JNU SAHIT VARTMAAN BUDDHIJIVIYON PER BJP KE KHILAAF MAANSIKTA HAAWI HAI ! AB YADI YE LOG APNI BAUDDHIK SHAKTI KA UPYOG YA DURUPYOG KARENGE TO SATTA APNA UPYOG YA DURUPYOG KYON NAA KARE JABKI USKE HAATH MEIN VYAVASTHA HAI AUR USE MAINTAIN KARNA USKI JIMMEWARI HAI AUR JO KOI USKE MAARG MEIN BAADHA DAALEGA TO USKA TO HAQ BANTA HAI APNE MAARG MEIN AANE WALE RODON KO HATAANA YA KUCHALNA ?

    ReplyDelete
  2. शायद हम दोनों एक ही बात कर रहे हैं. मुझे इस शोर-शराबे सेसिर्फ इतनी शिकायत है कि अब जो जिसे करना था कर चुका है. अब शोर मचाकर कानून को अपना काम करने से तो न रोका जाय..

    ReplyDelete
    Replies
    1. yes sir, isliye meine sabse pahle : SAHI KAHA SIR " kahkar apni sahmati dee hai aapke lekh per magar usmein dono ko barabar dosh jaata dikh raha tha isliye meine us difference ka aakar bhar bada karke dikhaaya hai sir,

      Delete
  3. Congress aur communists ke loktaantrik vicharon ko janna ho to inke buddhijivion dwara pichhla COMMUNAL VIOLENCE BILL uthakar dekho, kis prakar is desh kee bahusankhyak jansankhya ko hi nahin is desh ke loktaantrik dhaanche ko gulaam banaane ka prastaav de rahe the ! Vishwaas naa ho to ek baar use vistaar se padho aur dekho kise kitni aajaadi rahti us Bill ke kanoon banne ke baad ! Ek makaan maalik apne makaan ko kise kiraaye per de kise naa de ye bhi aajaadi nahin hoti ? aur chhodiye kashmir mein SC ST Act aur alpsankhyak ke paksh ke kaanoon ka kya ho raha hai jara dekhiye ! mujhe to samajh nahin aata ki hamare buddhijivi log kaise is tarah kee bauddhik napunsakta dikhaate hain vo bhi bahut hi naajuk moukon per ?

    ReplyDelete
  4. मैं आप के विचारों से सहमत हूँ. लेकिन साफ करना चाहूँगा कि मैं एक देशवासी के रूप से इस घटना के पटाक्षेप करने की बात कर रहा हूँ. क्योंकि सब लोग अपने विचारधारा के चश्मे से सब कुछ देख रहे हैं. यह नहीं होना चाहिए...आप की दूसरी टिपण्णी मेरे साथ दिखाई दे रही है. मैं भी तो उन्हीं बुद्धिजीवियों की बात कर रहा हूँ सर, जो बे-सिर-पैर कुछ भी इसलिए बोले जा रहे हैं क्योंकि उन्हें कहने को हम प्लेटफ़ॉर्म दे रहे हैं..जो गलत है..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

पढ़ाई बीच में छोड़ दी और कर दिया कमाल, देश के 30 नौजवान फोर्ब्स की सूची में

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है अगम की कहानी