सब गलत पर सही तो आप भी नहीं डीएम साहिबा

मुझे यह बताने/कहने में कोई गुरेज नहीं कि अपने 23 बरस के पत्रकारीय जीवन में मैं अब तक कभी भी किसी भी अधिकारी के कमरे में बिना बताये/पूछे या दरवाजे पर तैनात कर्मचारी की इच्छा के बगैर अन्दर पहुँच पाया हूँ. फिर कोई आम आदमी भला कैसे पहुँच गया जिलाधिकारी के कमरे तक. मैं बुलंदशहर की डीएम बी. चन्द्रकला के सन्दर्भ में यह बात कह रहा हूँ. क्या यह मान लिया जाये कि जिलाधिकारी का घर या दफ्तर अब इतना सहज और हर आम-ओ-खास के लिए सुलभ है. हो भी तो मन नहीं मानता. क्योंकि मैं बहुत मौकों पर कह और देख भी चुका हूँ कि आज के जिलाधिकारी हैं भले हमारे-आपके बीच के ही लोग लेकिन उनका बर्ताव अभी भी अंग्रेज अफसरों से कमतर नहीं है.

बात पुरानी है. पत्रकारिता में नया-नया आया था. मैं अपने वरिष्ठ का पत्र लेकर एक जिलाधिकारी के यहाँ गया. मेरे वरिष्ठ और डीएम, दोनों बेहतरीन दोस्त थे. मैं उनके पास बैठा ही था कि दरवान अन्दर आया. बोला-हुजूर, विजिलेंस से एक साहब आये हैं. हुजूर से मिलने की मंशा रखते हैं. डीएम साहब ने उन्हें फ़ौरन बुला लिया. अन्दर आते ही उन सज्जन ने एक पैर पटका और जोर से जय हिन्द बोला. डीएम साहब ने आने का कारण पूछा तो बोले-हुजूर की एक जाँच है. बयान दर्ज होना है. डीएम साहब ने ठहाका लगाया और बोले-बयान स्टेनो की मदद से लिख लाओ. और हाँ, ध्यान रखना. फिर आईएएस का मतलब भी पूछ लिया. विजिलेंस वाले सज्जन थोड़ा सकुचाये तब तक डीएम साहब ने खुद ही बता दिया. बोले-आईएएस का एक मतलब है-इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस और दूसरा मतलब होता है आई एम सेफ. मैं बैठा सोचता रहा और बाद में कई मौकों पर मुझे भी लगा कि ये तो वाकई सेफ ही हैं. अगर कुछ आईएएस अफसर जेल गए हैं या अभी भी जेल में हैं तो तय मन लीजिये कि उन्होंने कुछ खास टाइप के जुर्म किये होंगे. अन्यथा उत्तर प्रदेश विजिलेंस के पास अफसरों की ढेरों दस्तावेज धूल खा रहे हैं. क्योंकि उन्हें जरूरी मंजूरी नहीं मिल रही है. यह कम चूँकि संवर्गीय अधिकारी ही करते हैं तो भला किसकी हिम्मत जो उनके सम्मुख जाएगा अनुमति लेने के लिए.
अब फिर बुलंदशहर जिलाधिकारी की बात. अब तक जो कहानी सामने आई है, उसके मुताबिक एक नौजवान डीएम के कमरे में उनके साथ सेल्फी लेने की कोशिश कर रहा था. उसे जेल जाना पड़ा. निश्चित तौर पर उस नौजवान के कृत्य की भर्त्सना की जानी चाहिए. बिना अनुमति लिए उसे ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए था. वह भी तब जब जिलाधिकारी की कुर्सी पर कोई नारी बैठी हो. हमें यह नहीं भूलना चाहिए, कि हमारी भी माँ, बहन, बीवी है. जैसे हम उनकी इज्जत करते हैं, उससे कम इज्जत हमें किसी दूसरी महिला की कतई नहीं करनी चाहिए. संभव हो तो थोड़ा ज्यादा ही करना श्रेयस्कर होगा. अपनी माँ बच्चे के ढेरों उत्पात बर्दाश्त करती है. प्यार में ही बहन भाई की कई शैतानियाँ हंसते-हंसते टाल देती है. इस सबके बीच में डीएम साहिबा की सराहना नहीं की जा सकती. क्योंकि युवक को शांतिभंग करने के जुर्म में जेल भेजा गया. समझना मुश्किल है कि अब डीएम का घर/दफ्तर भी अशांत इलाका हो गया. जहाँ, पत्ता भी बिना उनकी इजाजत के नहीं हिल सकता. फिर जिले में शांति की बात बेमानी होगी. मैंने बहुत मौकों पर डीएम के सामने अधिकारियों को थर-थर कांपते, पसीने से लथपथ देखा है. असल में पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी इस धारा का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करती आई है. आगे भी ये सिलसिला चलेगा.
बिना किसी भेदभाव के मैं पत्रकार द्वारा फ़ोन टेप करने की निंदा करूंगा. उसे ऐसा नहीं करना था. समर्थन किसी अख़बार के दफ्तर के सामने कूड़ा फेंकने का भी  नहीं किया जा सकता, भले ही उसमें डीएम की सहमति न हो. पर, एक बात बिलकुल समझ से परे है कि अपने कमरे से एक नौजवान की गिरफ्तारी के सन्दर्भ में पूछने पर वह पत्रकार पर भड़की क्यों? पत्रकार ने कोई ऐसा सवाल तो नहीं पूछा था कि उसका जवाब नहीं दिया जा सकता. यह ऐसी बात भी नहीं थी जिस पर पत्रकार पर ही गुस्से का इजहार किया जाये. क्योंकि आप एक बहुत ही जिम्मेदार पद पर हैं, ऐसे में पत्रकार की माँ-बहन के साथ गैर मर्द भेज सेल्फी खिंचवाने धमकी ठीक बात नहीं. आडिओ सुनकर ऐसा भी महसूस हो रहा है कि जैसे यह कोई खबर नहीं थी. अब इन्हें कौन समझाए कि जिलाधिकारी के कमरे से इंसान नहीं अगर कोई छोटा-मोटा जानवर भी धरा जाता है तो वह खबर होती है. आखिर हो भी क्यों नहीं? जिले की लाखों की आबादी का मालिक जिलाधिकारी ही तो होता है. जनता उसे अपने आदर्श के रूप में देखती है. सराहा इसे भी नहीं जा सकता जब डीएम कहती हैं कि-देखती हूँ कि तुम क्या लिखते हो सुबह के अखबार में. बार-बार यह दोहराना कि तुम्हारे घर भेजूं अनजान मर्दों को. मेरे पास ऐसे तमाम लोग है, ठीक इसे भी नहीं कहा जा सकता. पूरे जिले को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी की है. कानून-व्यवस्था के लिए भी सीधे तौर वही जिम्मेदार होता है. इस सूरत में अगर डीएम ऐसे व्यवहार करने लगे तो जनता का भरोसा जीतने में मुश्किलें आ सकती है.
जिस किसी ने यह आडिओ सुना होगा भौचक ही रह गया होगा. क्योंकि जिले के आला अफसर अगर सूचना के लिए पत्रकारों को इस तरह जलील करेंगे तो बात नहीं बनेगी. इसकी निंदा ही करनी होगी. संभव है कि जिलाधिकारी उस संवाददाता से किसी बात पर पहले से ही चिढी हों या रिपोर्टर से वाकई कोई चूक हो गई हो, फिर भी इस विषय पर रिपोर्टर को बार-बार माँ-बहन का हवाला देना ठीक नहीं लगा.
बेहतर होता कि वे अपने तंत्र को कसतीं. कैसे उनके कमरे तक वह नौजवान पहुंचा. कैसे उसने हिमाकत की, इस बात की पड़ताल होती. लोगों से मिलने-जुलने के लिए कोई नया तरीका ईजाद करतीं. रिपोर्टर पर भड़ास निकालने का क्या मतलब. उसे धमकी देकर आप जिलाधिकारी पद की गरिमा गिरा रही हैं. ऐसी डीएम, जिसकी बहादुरी के ढेरों कारनामे सोशल मीडिया की सुर्खियाँ बनते रहे हों, जिसकी समाज में एक बेहतरीन अधिकारी की छवि हो, उसे यह कृत्य शोभा नहीं देता. इस तरह की धमकी देना जिलाधिकारी की कुर्सी को कमजोर करेगा. आडिओ सुनते वक्त कई बार मुझे लगा कि एक आईएएस अफसर इतनी कमजोर कैसे हो सकती है. जबकि कानून ने उसे बहुत सारे अधिकार दे रखे हैं. आडिओ में धमकी के साथ ही दुहाई भी सुनाई पड़ी. जब वे कह रही हैं कि तुम्हारी माँ, बहन, बीवी नहीं है क्या या तुम कैसे भाई हो आदि-आदि...  

Comments

  1. IAS is also the first citizen of the district, then it is also true that behavior, I think not.

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद विनय जी...मैं भी आप से सहमत हूँ. अगर सामान्य महिला ऐसा व्यवहार करती तो शायद कोई मामला ही नहीं बनता. लेकिन जब जिलाधिकारी की ओर से ऐसी पहल सामने आती है तो तकलीफ स्वाभाविक है.

    ReplyDelete
  3. पहली गलती पत्रकार ने की दो दूसरी गलती डीएम ने बात बराबर फिर कानूनी कार्यवाई क्यों ?

    ReplyDelete
  4. पद का दम्भ और इसी दम्भ की वजह से गलती हुई,इसे सभ्य समाज में कतई स्वीकार नही किया जा सकता

    ReplyDelete
  5. 8 साल के पत्रकारिता के जीवन में मैंने भी एक आईएस को ऐसे बात करते नहीं सुना।

    ReplyDelete
  6. किरदार बेच देने का अंजाम ये हुआ, दिल में उतरने वाले नजर से उतर गए !! यह मामला शांतिभंग का नहीं निजता से जुडा जान पड़ता है हमें ! आई एम सेफ

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

पढ़ाई बीच में छोड़ दी और कर दिया कमाल, देश के 30 नौजवान फोर्ब्स की सूची में

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है अगम की कहानी