चलो अच्छा हुआ, शहर अतिक्रमण मुक्त जो हुआ

देर से ही सही. अपना शहर लखनऊ अतिक्रमण मुक्त हो गया. कितनी मुश्किलों से गिराया साहबों ने सत्ताधारी दल के विधायक का शहर में मौजूद एक मात्र अतिक्रमण. कितनी ताकत जुटानी पड़ी. अब आप शहर के किसी भी इलाके से गुजरिये, अतिक्रमण नहीं मिलेगा. रात हो या दिन, सुबह हो या शाम. फर्राटा भरिये चाहे जियामऊ या फिर पुराना लखनऊ. विधायक के इसी अतिक्रमण ने ही शहर को बदसूरती का तमगा दे दिया था. कलंक था यह अतिक्रमण व्यवस्था पर. सवालिया निशान लगाते नहीं थकते थे लोग, जब इस अतिक्रमण को देखते थे.
गांधी जी के तीन बन्दर-हर बच्चे को पता है इनकी कहानी

कम से कम मुझे तो शर्म आती है अपनी इस कु-व्यवस्था पर. अरे जाहिलों-काहिलों, इतनी बड़ी इमारत न तो एक दिन में बनी न ही एक महीने में. कई महीने या यूँ कहें कि बरसों लगे इसे बनने और आबाद होने में. तब तुम रतौंधी / दिन्हौधीं (माफ़ करिएगा, संभवतः यह रोग मेडिकल साइंस में दर्ज नहीं होगा) रोग के शिकार थे. क्यों नहीं दिखी, जब यह इमारत बन रही थी. सत्ता-प्रतिष्ठान के इशारे पर की गई इस कार्रवाई का मैं विरोध नहीं कर रहा. मेरी हैसियत ही क्या है या मैं क्यों विरोध करूँ या फिर मेरे विरोध करने से होता भी क्या है आदि-आदि. पर मैं इस बात का विरोध जरूर करता रहूँगा, कि गली-मोहल्लों में तुम बहुमंजिली इमारतें क्यों बनवा रहे हो ? क्यों नहीं दिखता तुम्हें लोगों के जीवन पर खतरा ? रिहायशी कालोनियों को तुमने क्यों बना दिया है व्यावसायिक ? क्यों लोगों का जीवन दूभर करते जा रहे हो ? तुम्हारी सेहत पर तो कोई फर्क पड़ता नहीं. क्योंकि तुम्हारे अपने हित हैं और सब लोग जानते हैं तुम्हें काबू में करने के तरीके. और यह ऐसा आजमाया हुआ फार्मूला है कि जन-जन को मालूम हो चला है. तुम सब के सब गाँधी जी के इतने बड़े भक्त हो चले हो कि बस उनकी तस्वीर कहीं भी किसी भी रूप में दिखी नहीं कि तुम सलाम की मुद्रा में दिखने लगते हो. बंद करो. तुम सब पर इतनी ही सख्ती करो, जितनी विधायक जी पर की. और उससे भी आदर्श स्थिति यह होगी, कि इमारत बनने से पहले ही काम रोको. उस समय गाँधी जी की भी नहीं सुनो तुम सब. पर, क्या करोगे, राष्ट्रपिता के सामने नतमस्तक होने के बाद ढेरों जुर्म माफ़ करने की तुम्हारी ढोंगी परम्परा ने ही शहर को तबाह करके रख दिया है. सारी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती है.
गांधी जी भी जहाँ कहीं होंगे, गर्व कर रहे होंगे तुम पर. उनकी आड़ लेकर, उनसे प्यार करके तुमने शहर का बेड़ा गर्क करके रखा है. उन्होंने सच का साथ देने के लिए कहा था, कानून के रास्ते पर चलने के लिए कहा था, तुमने सच, कानून का साथ छोड़ दिया और केवल गांधी जी का साथ लिया. उन्होंने अहिंसा की वकालत की, तुमने उसे भी तोड़ा. गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी भी तुमने सुनी होगी बचपन में. पर तुम्हारे लिए सब ढकोसला साबित हो रहा. सत्ता के इशारे पर तुम किसी की अवैध इमारत को वैध करने के लिए अपनी कलम तोड़ सकते हो तो उसी सत्ता के एक इशारे पर उसी इमारत को अवैध बताने में तुम्हें कतई देर नहीं लगती. कमाल के भक्त हो तुम सारे गांधी जी के. गांधी जी से हुए तुम्हारे गठबंधन का ही कमाल है कि शहर के रिहायशी इलाके महानगर, अलीगंज, इंदिरानगर, गोमतीनगर, आशियाना, वृन्दावन योजना व्यावसायिक में बदल चुके हैं. इन इलाकों में ढेरों स्थान ऐसे हैं, जहाँ किसी ज़माने में ट्रक आसानी से गुजर जाते थे, लेकिन आज स्कूटर मुश्किल से निकल पाते हैं. मेरा विरोध व्यापार से बिलकुल नहीं है. विरोध गांधी जी से आप की मोहब्बत से है. कहते हैं न, प्यार और जंग में सब कुछ जायज है. ठीक वही हालत आप लोगों की है..गांधी जी से प्यार की वजह से ही ढेरों जायज काम को आप नाजायज और नाजायज काम को जायज ठहराने में आप तनिक भी वक्त नहीं लगाते. जबकि सच सभी को पता होता है...कि हर सिक्के के दो पहलू हैं...गांधी के दर्शन के हिसाब से आप जिस तरह पढ़ना चाहते हो, पढ़ते हो. बंद करो ये नाटक. आने वाली पीढी के बारे में सोचो. उन्हें गर्व पूर्वक कहने का मौका दो कि मेरे बाप-दादाओं ने इस शहर का एक बड़ा हिस्सा बनाया है. आमीन.


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