कैशलेस भारत के रास्ते में चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को अपने बहुचर्चित कार्यक्रम 'मन की बात' में देश के युवाओं से अपील की है कि वे भारत को कैशलेस राष्ट्र बनाने के लिए आगे आयें. निश्चित ही यह अहम कदम होगा, अगर हम इस सपने को साकार कर पाते हैं. जिस दिन ऐसा होगा, पूरी दुनिया में मोदी के नाम का डंका बजेगा. चहुँओर केवल और केवल मोदी और मोदी ही होंगे.
पर कुछ सवाल हैं और चुनौतियाँ भी. हमारे देश की आबादी लगभग 125 करोड़ है. इसमें से अभी भी आधी आबादी इन्टरनेट का इस्तेमाल नहीं करती. मोबाइल फोन चाहे कितने हो गए हों. जिन लोगों ने इन्टरनेट का इस्तेमाल शुरू भी कर दिया है, अभी वे इन्टरनेट बैंकिंग को लेकर सजग नहीं हैं. ऑनलाइन वालेट या एप पर सामान्य तौर पर वे भरोसा भी नहीं कर पाते कि ऐसा भी कोई माध्यम है, जिसके जरिए बिना रुपया हाथ में पकड़े काम हो जाएगा.
रविवार को जब मोदी जी अपनी बात देश के सामने रख रहे थे, उस समय मैं अपने एक मित्र के घर में था. भाभी जी बेटे के साथ लैपटॉप पर बैठकर कुछ खरीददारी कर रही थीं. सामान तय हो गया. खरीदने की प्रक्रिया में बेटे ने माँ का कार्ड नंबर जैसे ही डाला, उन्होंने मना कर दिया. बोलीं-रमेश (उनका बड़ा बेटा) कभी पूरा कार्ड नम्बर नहीं डालता. और खरीदारी नहीं हो पाई. बेटा माँ पर चीखा. बात मेरे कानों में भी पड़ी. पूरी जानकारी के बाद मैंने भी वकालत की कि कार्ड नंबर तो हर हाल में डालना पड़ेगा. पर, भाभी को भरोसा तब हुआ जब उन्होंने बड़े बेटे से बात कर ली. मेरी यह भाभी जी एक कालेज में एसोसियेट प्रोफ़ेसर हैं. पर, घर के रूटीन के काम भी पतिदेव ही सँभालते हैं. इसलिए वे इन्टरनेट को लेकर सहज नहीं है, खास तौर से खरीदारी को लेकर.
मोदी जी ने युवाओं के सहारे नब्ज तो सही पकड़ी है. पर, यह इतना आसान नहीं है. लगातार प्रयास के बाद कई बरस लगेंगे इस काम को पूरा होने में. वह भी तब, जब इसे सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा जाएगा. कोई राजनीति नहीं होगी. क्योंकि, इसकी पहली जरूरत है, सबको इंटरनेट. जो अभी गांवों में बमुश्किल 10 फ़ीसदी ही पहुँच बना पाया है. और यह एक दिन का काम नहीं है. बहुत आसान भी नहीं.
हालिया नोटबंदी के बाद गांवों में बरसों पुरानी एक परम्परा फिर से जीवित होती दिखी. कम से कम मैं तो बहुत ही खुश हुआ. गाँव में अब अनाज के बदले सब्जी, अनाज के बदले, कोई और सामान लेने का चलन शुरू हो गया. इसे मैं भी बचपन में देखा करता था. वस्तुतः 30-40 साल पहले गाँव की अर्थव्यवस्था कैशलेस ही थी. पहले तो किसी को सब्जी खरीदनी नहीं होती थी, फिर भी अगर जरुरत पड़ भी गई तो कोई भी उपलब्ध अनाज देकर सब्जी या किराने का सामान आसानी से ले लेता था. इस व्यवस्था पर लोगों का भरोसा था. जैसे-जैसे गांवों का शहरीकरण हुआ, यह व्यवस्था समाप्त सी हो गई. अब मज़बूरी में ही सही, एक बार फिर से इस व्यवस्था ने जन्म लिया है.
अब एक बार हमें फिर वैसा ही भरोसा इन्टरनेट बैंकिंग को जीतना होगा. इसके लिए इन्टरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी. दिल्ली और सुदूर सीमावर्ती गांवों में फर्क करना होगा. दो और उदहारण और. मेरे बेटा दिल्ली में है. मैंने पूछा, क्या हाल है. कैश जेब में है या नहीं. बोला-पापा, मेरे पास पहले भी नहीं होता था और भी नहीं है कैश. सारा काम तो वालेट आदि से निपट जाता है. मैं एक दिन गाँव पहुंचा. कैश मेरे पास भी नहीं थे. कुछ सामान खरीदना था गाँव के लिए ही. पर, कार्ड से पेमेंट लेने वाला कोई नहीं मिला. फिर चेक देकर काम चलाया. कहने का मतलब यह है कि यह सुनने में तो बहुत अच्छा लग सकता है-कैशलेस भारत.
पर, इसे बनाने में हमारी नई पीढ़ी को, मोदी जी की इच्छाशक्ति को और मजबूत करना होगा. हर हाल में गांवों तक इन्टरनेट पहुँचाना होगा. इससे बड़ी बात, इलेक्ट्रानिक पेमेंट के लिए एक बहुत बड़े जागरूकता अभियान को तुरंत शुरू करना होगा. क्योंकि, हमारा भारत अभी भी गांवों में ही बसता है. लकीर के फ़कीर न बनते हुए केंद्र सरकार को इसके लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे. निजी कंपनियों को भी कंधे से कन्धा मिलाकर सरकार का साथ देना होगा. युवाओं को अपने घर वालों को सिखाना होगा. जागरूक करना होगा. भरोसा सिलाना होगा. कई बार पेमेंट करके दिखाना होगा, वह भी योजना बनाकर नहीं. अचानक बिना बताए पेमेंट करना होगा. तब यह सपना साकार होगा. चुनौतियाँ हैं, समय लगेगा, लेकिन पूरा हो जाएगा कैशलेस भारत का सपना.
अगर ऐसा हुआ तो वाकई देश में बहुत बड़ा बदलाव आएगा. भ्रष्टाचार पर निश्चित कुछ हद तक विराम लगेगा. देश तरक्की भी करेगा. मैं तो यही चाहूँगा कि देश का युवा मोदी जी के इस सपने को साकार करने में मददगार हो, स्वयं मोदी जी और उनकी सरकार बिना किसी रूकावट के युद्ध स्तर पर इस काम में जुटें. राज्य सरकारें और फोन कम्पनियाँ भी अपना विस्तार तेजी से करें. आमीन !
ई-वालेट का प्रतीकात्मक चित्र साभार |
पर कुछ सवाल हैं और चुनौतियाँ भी. हमारे देश की आबादी लगभग 125 करोड़ है. इसमें से अभी भी आधी आबादी इन्टरनेट का इस्तेमाल नहीं करती. मोबाइल फोन चाहे कितने हो गए हों. जिन लोगों ने इन्टरनेट का इस्तेमाल शुरू भी कर दिया है, अभी वे इन्टरनेट बैंकिंग को लेकर सजग नहीं हैं. ऑनलाइन वालेट या एप पर सामान्य तौर पर वे भरोसा भी नहीं कर पाते कि ऐसा भी कोई माध्यम है, जिसके जरिए बिना रुपया हाथ में पकड़े काम हो जाएगा.
रविवार को जब मोदी जी अपनी बात देश के सामने रख रहे थे, उस समय मैं अपने एक मित्र के घर में था. भाभी जी बेटे के साथ लैपटॉप पर बैठकर कुछ खरीददारी कर रही थीं. सामान तय हो गया. खरीदने की प्रक्रिया में बेटे ने माँ का कार्ड नंबर जैसे ही डाला, उन्होंने मना कर दिया. बोलीं-रमेश (उनका बड़ा बेटा) कभी पूरा कार्ड नम्बर नहीं डालता. और खरीदारी नहीं हो पाई. बेटा माँ पर चीखा. बात मेरे कानों में भी पड़ी. पूरी जानकारी के बाद मैंने भी वकालत की कि कार्ड नंबर तो हर हाल में डालना पड़ेगा. पर, भाभी को भरोसा तब हुआ जब उन्होंने बड़े बेटे से बात कर ली. मेरी यह भाभी जी एक कालेज में एसोसियेट प्रोफ़ेसर हैं. पर, घर के रूटीन के काम भी पतिदेव ही सँभालते हैं. इसलिए वे इन्टरनेट को लेकर सहज नहीं है, खास तौर से खरीदारी को लेकर.
मोदी जी ने युवाओं के सहारे नब्ज तो सही पकड़ी है. पर, यह इतना आसान नहीं है. लगातार प्रयास के बाद कई बरस लगेंगे इस काम को पूरा होने में. वह भी तब, जब इसे सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा जाएगा. कोई राजनीति नहीं होगी. क्योंकि, इसकी पहली जरूरत है, सबको इंटरनेट. जो अभी गांवों में बमुश्किल 10 फ़ीसदी ही पहुँच बना पाया है. और यह एक दिन का काम नहीं है. बहुत आसान भी नहीं.
हालिया नोटबंदी के बाद गांवों में बरसों पुरानी एक परम्परा फिर से जीवित होती दिखी. कम से कम मैं तो बहुत ही खुश हुआ. गाँव में अब अनाज के बदले सब्जी, अनाज के बदले, कोई और सामान लेने का चलन शुरू हो गया. इसे मैं भी बचपन में देखा करता था. वस्तुतः 30-40 साल पहले गाँव की अर्थव्यवस्था कैशलेस ही थी. पहले तो किसी को सब्जी खरीदनी नहीं होती थी, फिर भी अगर जरुरत पड़ भी गई तो कोई भी उपलब्ध अनाज देकर सब्जी या किराने का सामान आसानी से ले लेता था. इस व्यवस्था पर लोगों का भरोसा था. जैसे-जैसे गांवों का शहरीकरण हुआ, यह व्यवस्था समाप्त सी हो गई. अब मज़बूरी में ही सही, एक बार फिर से इस व्यवस्था ने जन्म लिया है.
अब एक बार हमें फिर वैसा ही भरोसा इन्टरनेट बैंकिंग को जीतना होगा. इसके लिए इन्टरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी. दिल्ली और सुदूर सीमावर्ती गांवों में फर्क करना होगा. दो और उदहारण और. मेरे बेटा दिल्ली में है. मैंने पूछा, क्या हाल है. कैश जेब में है या नहीं. बोला-पापा, मेरे पास पहले भी नहीं होता था और भी नहीं है कैश. सारा काम तो वालेट आदि से निपट जाता है. मैं एक दिन गाँव पहुंचा. कैश मेरे पास भी नहीं थे. कुछ सामान खरीदना था गाँव के लिए ही. पर, कार्ड से पेमेंट लेने वाला कोई नहीं मिला. फिर चेक देकर काम चलाया. कहने का मतलब यह है कि यह सुनने में तो बहुत अच्छा लग सकता है-कैशलेस भारत.
पर, इसे बनाने में हमारी नई पीढ़ी को, मोदी जी की इच्छाशक्ति को और मजबूत करना होगा. हर हाल में गांवों तक इन्टरनेट पहुँचाना होगा. इससे बड़ी बात, इलेक्ट्रानिक पेमेंट के लिए एक बहुत बड़े जागरूकता अभियान को तुरंत शुरू करना होगा. क्योंकि, हमारा भारत अभी भी गांवों में ही बसता है. लकीर के फ़कीर न बनते हुए केंद्र सरकार को इसके लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे. निजी कंपनियों को भी कंधे से कन्धा मिलाकर सरकार का साथ देना होगा. युवाओं को अपने घर वालों को सिखाना होगा. जागरूक करना होगा. भरोसा सिलाना होगा. कई बार पेमेंट करके दिखाना होगा, वह भी योजना बनाकर नहीं. अचानक बिना बताए पेमेंट करना होगा. तब यह सपना साकार होगा. चुनौतियाँ हैं, समय लगेगा, लेकिन पूरा हो जाएगा कैशलेस भारत का सपना.
अगर ऐसा हुआ तो वाकई देश में बहुत बड़ा बदलाव आएगा. भ्रष्टाचार पर निश्चित कुछ हद तक विराम लगेगा. देश तरक्की भी करेगा. मैं तो यही चाहूँगा कि देश का युवा मोदी जी के इस सपने को साकार करने में मददगार हो, स्वयं मोदी जी और उनकी सरकार बिना किसी रूकावट के युद्ध स्तर पर इस काम में जुटें. राज्य सरकारें और फोन कम्पनियाँ भी अपना विस्तार तेजी से करें. आमीन !
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