नोटबंदी गेमचेंजर साबित होगी या नहीं...मगर उन्हें आलोचकों की परवाह नहीं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : फ़ाइल फोटो साभार
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करना गेमचेंजर था या कुछ और ?  इस पर विशेषज्ञों का फैसला आना अभी बाकी है. इसके परिणाम तुरंत आएंगे भी नहीं. सी फैसले के कुछ दूरगामी लाभ मिलेंगे तो संभव है कि कुछ नुकसान भी सामने आये, पर यह भी सच है के देश में आम लोगों का संकट कम नहीं हुआ है, लेकिन अभियान के 50 दिन पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आलोचनाओं को दरकिनार कर दिया. मोदी ने कहा कि आलोचक जो भी कहें, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है. देश की जनता मेरे साथ है. नोटबंदी में मेरा कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं है. यह लोगों के हित में है. उन्होंने कहा कि ये फैसला गरीबों, पिछड़ों और हाशिए पर खड़े लोगों के हित में लिया गया हैं.

मोदी ने कहा कि नीति और रणनीति में फर्क करने में सक्षम होना पड़ेगा. दोनों को एक ही टोकरी में न डालें. 500 और 1000 के नोट बंद होने का फैसला हमारी नीति को दर्शाता है. यह बिल्कुल अटल और स्पष्ट है. मगर हमारी रणनीति को अलग होने की जरूरत थी. संक्षेप में ये पुरानी कहावत को चरितार्थ करता है 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' अगर इरादे ईमानदार और स्पष्ट हैं तो नतीजा सबको दिखेगा.

एनबीटी के मुताबिक-मोदी ने कहा कि वह नोटबंदी पर दोनों सदनों में बोलना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने बहस की जगह सदन की कार्यवाही को पटरी से उतारने का ठोस प्रयास किया. उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार चुनावों की हमारी मौजूदा व्यवस्था न सिर्फ राजनीतिक खर्च बढ़ाती है. इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर भी चोट पहुंचाती है. इससे देश हमेशा चुनावी मुद्रा में ही रहता है. 
हमें लगातार चुनाव को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. मैं संसद और विधानसभा के चुनाव साथ कराने की संभावना तलाशने के लिए चुनाव आयोग की पहल की तारीफ करता हूं.

मोदी ने कहा कि ये दिलचस्प है कि मॉन्यूमेंटर मिस मैनेजमेंट जैसे शब्द मनमोहन सिंह जैसे नेता की जुबान से निकले हैं, जो इस देश के 45 साल के आर्थिक सफर में शामिल रहे हैं. वह डीईए सचिव के मुख्य आर्थिक सलाहकार से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, देश के वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री तक रहे हैं, मगर उनके दौर में समाज का एक बड़ा तबका गरीबी में जीता रहा है.

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