नोटबंदी के बाद सरकार की सोच से ज्यादा रकम बैंकों में जमा हुई, क्या हैं इसके मायने ?
एक हजार, पांच सौ के पुराने नोट: प्रतीकात्मक फोटो :साभार |
नोटबंदी को अब 50 दिन होने को हैं. समस्याएं जस की तस हैं. बैंकों में निश्चित भीड़ कम हुई है लेकिन एटीएम खाली हैं. और इस बीच जो सरकारी आंकड़े सामने आ रहे हैं, वह बेहद चौंकाने वाले हैं. नोटबंदी के बाद हजार, पांच सौ के बाजार में उपलब्ध 15.4 लाख करोड़ रुपये के नोटों में से अब तक 14 लाख करोड़ बैंकों में जमा हो चुके हैं. यह सरकार के अनुमान से कहीं ज्यादा हैं. सरकार का अनुमान था कि तीन लाख करोड़ रूपए तक के नोट काले धन के तौर पर बैंकों में जमा नहीं हो सकेंगे.
इसका मतलब यह हुआ कि सारी कवायद बेमकसद साबित हुई. जनता बेवजह परेशान हुई. माँ, बहन, बेटियों की बचत जरुर बैंक पहुँच गई, इस बचत के जरिए ही इनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ रहता था. अब वह सब बैंक, सरकार, और परिवार के अन्य सदस्यों की नजर में आ गया. तो क्या मान लिया जाए कि सरकार का आंकलन गलत साबित हुआ ? अर्थशास्त्री तो पहले से ही कहते आ रहे हैं कि कालाधन कहीं भी नगदी में नहीं होता. अगर होता भी है तो बहुत कम.
काले धन पर काम करने वाले जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि उन्हें इतनी बड़ी मात्र में राशि के वापस सिस्टम में लौटने से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है. काले धन को लेकर सरकार का आकलन हमेशा से गलत रहा है. उन्होंने कहा- 'मेरा अध्ययन कहता है कि भारत में जितना काला धन संचित होता है उसका बमुश्किल 1-2 फीसद ही नकदी में संचित रखा जाता है. जिसके पास काले धन के तौर पर नकदी थी उन्होंने जन धन खाते, चालू खाते, सोना व मकान खरीदने में लगा दिया है. इसके सबूत भी मिल रहे हैं.
नोटबंदी की घोषणा होने के तुरंत बाद बुलाई गई प्रेस कांफ्रेस में आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने बताया था कि देश में जितनी मुद्रा प्रचलन में है उनका 86 फीसद (लगभग 14.50 लाख करोड़ रुपया) 500 व 1000 रुपये के नोट के हैं.
इसका एक मतलब यह भी हुआ कि या तो काले धन का आकलन ही गलत था या फिर नोट बंदी के बाद काला धन रखने वालों ने अलग अलग माध्यम से इसे सफेद बना दिया. वजह जो हो, ऐसा हुआ तो राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चो पर सरकार को कुछ जवाब देने पड़ सकते हैं.
इतनी बड़ी कवायद से सरकार को एकमात्र खुशी यह हो सकती है कि अब उसे 2.5 लाख रुपये की सीमा से ऊपर जमा किए गए रुपयों पर बड़ी मात्रा में टैक्स मिलेगा. घरों में रखी गई छोटी-छोटी बचत राशि के बैंकों में आ जाने से भी सरकार को एक फायदा नजर आ रहा है क्योंकि सरकार को लगता है कि इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.
सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना नाम से एक स्कीम भी जारी की थी जिसके तहत जिसके पास भी अघोषित आय है, उन्हें कर, जुर्माना और अधिभार के रूप में 50 प्रतिशत देकर पाक साफ होने का एक मौका दिया गया है. साथ ही उन्हें 25 प्रतिशत राशि बिना ब्याज वाले जमा योजना में चार साल के लिए लगानी होगी.
उधर, नोटबंदी की घोषणा के बाद 10 नवंबर से 10 दिसंबर के बीच 4.61 लाख करोड़ रुपये की कीमत के 21.8 अरब नोट बैंकों और एटीएम से जारी किए गए. इस दौरान आयकर विभाग ने 3300 करोड़ रुपये की अघोषित आय पकड़ी. इस दौरान 92 करोड़ रुपये के पुराने 500 और 2000 के नए नोट बरामद हुए.दिल्ली, मुबंई, जयपुर और अहमदाबाद में हवाला कारोबार में 80 फीसदी की कमी आई. जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आई.
नोट बंदी के सरकार के फैसले के प्रबल समर्थक व वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार व वरिष्ठ अर्थशास्त्री राजीव कुमार कहते हैं - 'अगर प्रचलन से पूरी राशि बैंकों में आ जाती है तो यह किसी के लिए भी बुरी तरह से चौंकाने वाली बात होगी. इसका यह भी मतलब होगा कि काला धन रखने वाले सरकार से भी ज्यादा माहिर हैं और उन्होंने इस दौरान तमाम तरीकों से अपने पैसे को सिस्टम में भेज दिया.
यह भी संभव है कि रिजर्व बैंक के स्तर पर नोट मुद्रण का डाटा रखने में चूक हुई हो. क्योंकि सरकार से ऐसी चूक कैसे हो सकती है? सरकारी अफसरों का आंकलन इतना गड़बड़ कैसे हो सकता है? जो भी हो, सरकार को इसे भी देखना होगा. क्योंकि यह तय है कि कहीं कहीं कोई न कोई चूक हुई है नोटों की गणना में.
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