...तो क्या रामराज्य के मुहाने पर खड़ा है अपना भारत !

पीएम नरेन्द्र मोदी :फोटो साभार

आज भारत एक विकसित राष्ट्र और दुनिया के लीडर के रूप में अपनी निहित क्षमताओं को यथार्थ में बदलने के ऐतिहासिक पल में खड़ा है. वह भारत जहां का किसान खुश, नेता समृद्ध, प्रत्येक महिला सशक्त और युवा रोजगार में लगे हों. वह भारत जहां प्रत्येक परिवार के पास घर और प्रत्येक घर के पास बिजली, पानी और शौचालय जैसी आम सुविधाएं हों. वह भारत जो सभी गंदगियों से स्वच्छ हो. ये बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंडिया टूडे से ख़ास बातचीत में कहीं. नोटबंदी के बाद यह उनका पहला साक्षात्कार है. पेश हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश.

  • लगातार संशोधनों के बारे में मोदी ने कहा, नीति और रणनीति के बीच में फर्क करने में सक्षम बनना पड़ेगा और दोनों को एक ही टोकरी में नहीं डालें. विमुद्रीकरण का फैसला, जो हमारी नीति को दर्शाता है, वो बिल्कुल अटल और स्पष्ट है. मगर हमारी रणनीति को अलग होने की जरूरत थी, संक्षेप में ये वो पुरानी कहावत को चरितार्थ करता है ‘तू डाल डाल, मैं पात पात.’
  • अगर आपके इरादे ईमानदार और स्पष्ट हैं तो नतीजा सबको दिखेगा. मेरे आलोचक जो भी कहें, मैं इससे कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं देख रहा, यह लोगों के हित में है.
  • यह निर्णय इतना बड़ा है कि हमारे सबसे अच्छे अर्थशास्त्री भी अपनी गणना से भ्रमित हो गए हैं. मगर भारत की 1.25 बिलियन जनता ने इसका दिलोजान से स्वागत और समर्थन किया जबकि उनको बड़ी व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्हें इसकी जरूरत और इसके प्रभाव का सहज ज्ञान है.
  • मुझे मेरे कुछ विरोधियों और खास कर कांग्रेस के नेतृत्व को उनकी हताशा दिखाने पर दुख होता है. एक तरफ वो कहते हैं कि मैंने यह फैसला राजनीतिक फायदे के लिए लिया है तो दूसरी ओर कहते हैं कि लोगों को कठिनाई हो रही है और इस फैसले से वो नाखुश हैं. ये दोनों एक साथ कैसे हो सकता है?
  • सरकार ने संसद को चलाने की भरपूर कोशिश की. वित्त मंत्री ने कांग्रेस से कई मौकों पर डिबेट और संसद को चलने देने की अपील और मैंने भी सदन की कार्यवाही में भाग लेने का उन्हें आश्वासन दिया. मैं दोनों सदनों में बोलना चाहता था. लेकिन, कांग्रेस की तरफ के उचित बहस की जगह सदन की कार्यवाही को पटरी से उतारने का ठोस प्रयास किया गया.
  • राजनीति में भ्रष्टाचार की बात को कम करने का यह फैशन खतरनाक है. यह कई अन्य दोषियों को इसी अंदाज में कवर देता है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं राजनीति में भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करूंगा.
  • मैंने लगातार इस बात पर भी चिंता व्यक्त की है कि बार बार चुनावों की हमारी मौजूदा व्यवस्था ना सिर्फ राजनीतिक खर्चा बढ़ाती है और इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर भी चोट पहुंचाती है बल्कि इससे देश हमेशा चुनावी मुद्रा में ही रहता है. हमें इस लगातार हो रहे चुनावों को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. मैं संसद और विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव कराने की संभावनाओं को तलाशने की चुनाव आयोग की पहल की तारीफ करता हूं.
  • मनमोहन सिंह के विषय में बोले मोदी- ये दिलचस्प है कि मान्यूमेंटर मिसमैनेजमेंट जैसे शब्द मनमोहन सिंह जैसे नेता की जुबान से निकले हैं जो 45 साल इस देश के आर्थिक सफर में शामिल रहे हैं. डीईए सचिव के मुख्य आर्थिक सलाहकार से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, देश के वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री. इस दौर में ही हमारे समाज का बड़ा तबका गरीबी और अभाव में जीता आ रहा है. इससे भी दिलचस्प बात ये है कि इतने दशकों में भी वो ये सुनिश्चित करने में कामयाब रहे कि उनपर किसी ने आश्चर्यजनक कुप्रबंधन का आरोप नहीं लगाया.
  • अगर कोई निष्पक्षता के साथ मेरी सरकार के पिछले ढाई साल के कार्यकाल के दौरान लिए गए फैसलों का मूल्यांकन करेगा तो यह मालूम पड़ेगा कि ये गरीब, पिछड़े और हाशिए पर खड़े लोगों के हितों को केंद्र में रखते हुए लिए गए हैं.

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