अखिलेश जीतें या मुलायम, इस सियासी तपिस में समाजवादी पार्टी का झुलसना तय
दो फाड़ होगी या एक रहेगी सपा, फैसला शनिवार को: प्रतीकात्मक फोटो: साभार |
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सरकारी आवास 5 काली दास मार्ग हो या फिर विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित मुलायम सिंह की कोठी और समाजवादी पार्टी का कार्यालय. आम जनता और मीडिया के लिए फिलहाल ये तीनो गेट बंद हैं. इन ठिकानो के गेट तभी खुलते हैं जब कोई ख़ास कार अचानक अन्दर जाती है या फिर अन्दर से बाहर निकलती है. गेट पर भीड़ लगाए मीडियाकर्मी और पार्टी कार्यकर्ता पता करने की कोशिश में लग जाते हैं कि कौन कहा आया . मोबाइल फोन पर पार्टी में अपने सूत्रों के फोन नंबर डायल होने लगते हैं. हर तरफ कयासों का दौर है और दंगल के पहलवानों की नयी चाल का इन्तजार. हर बार खुलते बंद होते गेट किसी नयी ब्रेकिंग खबर को जन्म दे रहे हैं.
सियासी पंडितो की नजर एक तरफ तो इन हलचलो पर है और दूसरी तरफ इतिहास के पन्नो पर. पार्टी के टूटने की चर्चाओं के बीच कभी साईकिल चुनाव चिह्न के सीज होने के प्रयासों की खबर आती है तो कभी मुलायम के झुकने की अटकले लगायी जाने लगाती हैं. इस बीच यह तो तय ही हो गया है कि अखिलेश खेमा अब कतई झुकने वाला नहीं.
इस उठापटक के बीच कुछ जानकर यह भी कहते सुने जाते हैं कि क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है. या लखनऊ कोई नया इतिहास लिखने जा रहा है. तब घटनास्थल नयी दिल्ली का 24 अकबर रोड था और अब लखनऊ का कालिदास मार्ग. फर्क सिर्फ इतना है कि तब जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गाँधी ने अपनी पार्टी से बगावत कर एक नया इतिहास बनाया था मगर तब नेहरू दिवंगत हो चुके थे और इसबार सियासत के जाने माने पहलवान मुलायम सिंह क उनके ही बेटे अखिलेश यादव ने राजनीति के अखाड़े में उन्हें चुनौती दे दी है.
कयास यह भी हैं कि बात इस कदर बढ़ चुकी है या तो अखिलेश यादव को मुलायम सिंह पार्टी से निकल दें या फिर अखिलेश ही पार्टी की आम सभा बुला कर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की घोषणा कर अपने करीबी धर्मेन्द्र यादव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दें. तीन महीनो से चल रहे इस अंतर्कलह के बीच अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को काफी हद तक खलनायक प्रोजेक्ट करने में कामयाबी पा ली है. अपनी ही कड़ी की गयी पार्टी में शिवपाल अलग थलग पड़ते दिखाई दे रहे हैं अखिलेश यादव ने अपनी लिस्ट में भी कई ऐसे नेताओं पर हाथ रखा है जो शिवपाल की लिस्ट में भी शामिल हैं, ऐसे में वे नेता भविष्य के नेतृत्व को देखते हुए अखिलेश के खेमे में खड़े दिखाई दे सकते हैं.
इंदिरा ने भले ही कांग्रेस तोड़ी हो मगर अखिलेश की पहली कोशिश पार्टी पर कब्ज़ा करने की ही होगी.परिवार के भीतर भी शिवपाल अलग थलग पड़ चुके हैं, पुरानी पीढ़ी के पर. रामगोपाल से ले कर नयी पीढ़ी के धर्मेन्द्र यादव और अक्षय यादव सरीखे नेता अब अखिलेश के साथ खड़े हैं. अब मसला सिर्फ मुलायम सिंह यादव का ही है जिनपर शिवपाल के भविष्य का दारोमदार टिका है.
शनिवार की सुबह और महत्वपूर्ण होगी. इस सियासी दंगल का एक और राउंड पूरा होगा. मुलायम सिंह ने सभी घोषित प्रत्याशियों की बैठक जो बुलाई है. सबकी निगाहें इस बैठक में शामिल होने वाले प्रत्याशियों के रुख पर है. उनके सामने भी धर्म संकट है. ये प्रत्याशी अपने अपने सूत्रों से यह पता करने की कोशिश में लगे हैं कि उन्हें इस बैठक में जाना चाहिए या नहीं, या फिर बैठक के बीच ही अपनी बात कहनी चाहिए ? इन प्रत्याशियों को अब यह भी तय करना है कि वक्त पड़ने पर वे किस खेमे के साथ चुनाव मे उतरना पसंद करेंगे.
कयास यह भी हैं कि बात इस कदर बढ़ चुकी है या तो अखिलेश यादव को मुलायम सिंह पार्टी से निकल दें या फिर अखिलेश ही पार्टी की आम सभा बुला कर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की घोषणा कर अपने करीबी धर्मेन्द्र यादव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दें. तीन महीनो से चल रहे इस अंतर्कलह के बीच अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को काफी हद तक खलनायक प्रोजेक्ट करने में कामयाबी पा ली है. अपनी ही कड़ी की गयी पार्टी में शिवपाल अलग थलग पड़ते दिखाई दे रहे हैं अखिलेश यादव ने अपनी लिस्ट में भी कई ऐसे नेताओं पर हाथ रखा है जो शिवपाल की लिस्ट में भी शामिल हैं, ऐसे में वे नेता भविष्य के नेतृत्व को देखते हुए अखिलेश के खेमे में खड़े दिखाई दे सकते हैं.
इंदिरा ने भले ही कांग्रेस तोड़ी हो मगर अखिलेश की पहली कोशिश पार्टी पर कब्ज़ा करने की ही होगी.परिवार के भीतर भी शिवपाल अलग थलग पड़ चुके हैं, पुरानी पीढ़ी के पर. रामगोपाल से ले कर नयी पीढ़ी के धर्मेन्द्र यादव और अक्षय यादव सरीखे नेता अब अखिलेश के साथ खड़े हैं. अब मसला सिर्फ मुलायम सिंह यादव का ही है जिनपर शिवपाल के भविष्य का दारोमदार टिका है.
शनिवार की सुबह और महत्वपूर्ण होगी. इस सियासी दंगल का एक और राउंड पूरा होगा. मुलायम सिंह ने सभी घोषित प्रत्याशियों की बैठक जो बुलाई है. सबकी निगाहें इस बैठक में शामिल होने वाले प्रत्याशियों के रुख पर है. उनके सामने भी धर्म संकट है. ये प्रत्याशी अपने अपने सूत्रों से यह पता करने की कोशिश में लगे हैं कि उन्हें इस बैठक में जाना चाहिए या नहीं, या फिर बैठक के बीच ही अपनी बात कहनी चाहिए ? इन प्रत्याशियों को अब यह भी तय करना है कि वक्त पड़ने पर वे किस खेमे के साथ चुनाव मे उतरना पसंद करेंगे.
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