कौन थीं रानी पद्मावती और क्या है उनसे जुड़े तथ्य, जानना चाहेंगे ?
रानी पद्मावती का काल्पनिक चित्र :साभार |
फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली अपनी आने वाली फिल्म पद्मावती को लेकर चर्चा में हैं. जयपुर में फिल्म शूटिंग के दौरान हंगामा और मारपीट के बाद यह सवाल उठाना लाजिमी है कि असल में विवाद की वजह क्या है? कोई ठोस बात है या फिर यूँ ही हंगामा बरपा है.
सच जो भी हो इतिहास से छेड़छाड़ की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती. कहा जा रहा है कि भंसाली की इस फिल्म में रानी पदमावती और मुसलमान शासक अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम प्रसंग के बारे में बताया जाना था. पता चला है कि भंसाली अब इस फिल्म का नाम बदलने को राजी हो गए हैं. वे तथ्यों से छेड़छाड़ भी नहीं करेंगे.
ऐसा वायदा उन्होंने विरोध कर रहे राजपूत संगठनों से किया है. भंसाली जो करेंगे, वह तो बाद मन पता चलेगा, लेकिन समय है कि एक बार रानी पद्मावती के बारे में कुछ जरूरी तथ्यों को जाना जाए. यद्यपि इतिहासकार इस मसले पर एकमत नहीं हैं.
कोई रानी पदमावती के अस्तित्व को ही नकारता है तो कोई दोनों पात्रों के अलग अलग सदी में होने का दावा करता है. तो फिर रानी पदमावती को लेकर असली कहानी है क्या? कुछ इतिहासकार कहते हैं कि राजनी पदमिनी केवल एक काल्पनिक किरदार थी जिसे सूफी कवि और गायक मलिक मोहम्मद जायसी ने महाकवि तुलसीदास की रामचरित मानस से 30 साल पहले अवधी में लिखा था.
- रानी पदमावती के किरदार के बारे में सबसे पहली जानकारी मशहूर कवि मलिक मोहम्मद जायसी की 1540 में लिखी गई कविता में मिलती है, जिसे पदमावत कहा गया.
- इसके अलावा एक मशहूर धारणा है कि रानी पदमिनी राना रतन सिंह की धर्मपत्नी थी. साल 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ के शासन पर हमला किया. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि अलाउद्दीन रानी पदमावती को बंधक बनाना चाहता था.
- इसके लिए अलाउद्दीन ने राना रतन सिंह को बंधक बना लिया और पदामवती को एक संदेश भेजा कि राजा को मुक्त किया जा सकता है अगर वह उसके साथ चलने के लिए राजी हो जाए.
- रानी पदमावती ने राना को बचाने के लिए 700 सैनिकों को भेजा और उन्होंने सफलतापूर्वक राजा को बचा लिया. इसी बीच खिलजी राजा और सैनिकों के पीछे पीछे चल दिया.
- इसके बाद चित्तौड़गढ़ के किले में राना और खिलजी के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें राना मारे गए. इसके बाद खुद की आबरू बचाने के लिए राजनी पदमिनी जौहर के तहत खुद को आग के हवाले कर दिया, ताकि खिलजी उस तक न पहुंच सके.
- वहीं कुछ इतिहासकार कहते हैं कि राजनी पदमिनी केवल एक काल्पनिक किरदार थी जिसे सूफी कवि और गायक मलिक मोहम्मद जायसी ने महाकवि तुलसीदास की रामचरित मानस से 30 साल पहले अवधी में लिखा था.
- कुछ लोग भी मानते हैं कि इस बात के कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं हैं कि रानी पदमिनी का कोई अस्तित्व रहा है और न ही उसका अलाउद्दीन खिलजी से कोई जुड़ाव है. अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलों को पराजित कर देश में अपना शासन स्थापित किया था. उसे एक काबिल शासक माना जाता रहा है.
- लोगों की बातों को इस बात से भी बल मिलता है कि भारत के इंपिरियल गजेटियर पर प्रकाशित एक पुस्तक के अनुसार जायसी अपनी कविता के अंतिम प्रसंग में इस बात का जिक्र करते हैं कि यह सब एक 'रूपक' है.
- इस विषय को लेकर भ्र्रम की स्थिति की एक वजह ये भी है कि, जायसी के महाकाव्य और इसके कई अनुवाद और रूपांतरों के अलावा रानी पद्मिनी की कहानी के कई अलग अलग संस्करण भी हैं.
- 16वीं शताब्दी की गोरा बादल पदमिनी चौपाई जिसे राजपूत कहानियों को प्रस्तुत करती है, में कहा गया है कि यह एक सच्ची कहानी है.
- इसके अलावा 19 वीं सदी के औपनिवेशिक व्याख्याओं, और फिर कई बंगाली आख्याओं में भी राजनी पदमिनी का जिक्र बार बार आता है.
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