महाशिवरात्रि विशेष: जानिए शिव पूजन के कुछ अचूक उपाय, सुख-शांति मिलेगी

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भगवान शंकर परम करुणामय तथा शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं. देव तथा दैत्यों कॊ समान रूप से वंदनीय है. अन्य देवों के पूजन मॆ विधि विधान, पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है. परन्तु शिव पूजन मॆ मानसिक पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है बाह्य अशुद्धि का नहीं. 
हमने अक्सर देखा है की धनी व्यक्ति शुद्धता तथा बाह्य पवित्रता का आचरण अपने आर्थिक सामर्थ्य से कर लेता है. परन्तु आर्थिक दरिद्रता के बोझ तले दबा व्यक्ति मन मॆं ईश्वर प्रेम होने के बाद भी बाह्य रूप से कर्मकांडी शुद्धता का पालन नही कर पाता. धन के अभाव तथा दरिद्रता के कारण वह मंदिर मठों मॆं भेदभाव का सामना करता हुआ भगवान की भक्ति नहीं कर पाता. परन्तु भगवान शिव परम दयालु है शुद्ध भाव से जल तथा विल्व पत्र अर्पण करने से देवाधीदेव प्रसन्न हो आप पर कृपा करते हैं.
विधि विधान की आवश्यकता नहींः रामचरितमानस मॆं भगवान राम ने कहा है...
निर्मल मन जन सो मोहि पावा, 
मोहि कपट छलछिद्र ना भावा 
जिस बच्चे कॊ बोलना नहीं आता वह भाव मात्र से माता का प्रेम पाता है. इसलिए ये निर्मल मन से जल से भगवान शिव का ऐसे पूजन करें जैसे एक बालक अपने माता पिता का पूजन करता है यदि भाव नहीं तो संस्कृत के मंत्र भी बेकार हैं.
महाशिवरात्रि का महत्व 
भगवान विष्णु और ब्रम्हा के श्रेष्ठता के विवाद मॆं भगवान शिव इसी दिन ज्योतिर्लिंग के रूप मॆं प्रकट हुए. दोनों इस लिंग का छोर पता करने के लिए ब्रम्हा ऊपर तथा विष्णु नीचे गये दोनों इस लिंग का छोर पता नहीं कर पाये विष्णु ने अपनी हार मान ली तथा ब्रम्हा ने झूठ बोला. भगवान शिव जो स्वयं लिंग स्वरूप थे उन्होंने विष्णु को अपने समाज में पूजित होने का वरदान दिया तथा ब्रह्मा कॊ सभी पूजा से अलग कर दिया. शिव के लिंग रूप मॆ प्रकट होने से इस दिन कॊ महाशिवरात्रि के रूप मॆ मनाया जाता है.
प्रदोष काल का महत्व 
अर्ध रात्रि त्रयोदशी कॊ प्रदोषकाल कहा जाता है। भगवान शिव काल स्वरूप है जैसे-2 चंद्र की कला घटती है अंधेरा बढ़ता है वैसे ही काल के प्रभाव की वृध्दि होती है इस समय शिवपूजन का विशेष महत्व है.
शनि प्रदोष का महत्व 
जिस दिन त्रयोदशी शनिवार के दिन पड़े उसे खास माना जाता है उस समय अर्धरात्रि मॆं शिव पूजन पितृदोष,कालसर्प योग तथा शनिजनित समस्त पीड़ा का नाश होता है. शनि, यम तथा समस्त दंडाधिकारी भगवान शिव की आज्ञा से ही दंड देते हैं. इसीलिये शनिवार कॊ त्रयोदशी पड़े तो शिवपूजन से समस्त दुखों का नाश होता है.
पारद लिंग पूजन महात्म्य
पारा एक चमत्कारी रसायन है. यह भगवान शंकर का वीर्य है जिस तरह वीर्य द्वारा समस्त सॄष्टि की उत्पति होती है वैसे ही यह साक्षात शिव स्वरूप है. इस लिंग के पूजन से समस्त दुखों का नाश, निरोग तथा धन धान्य की प्राप्त होती है. यह बिष का ही स्वरूप है चांदी जैसा दिखने वाला हमेशा तरल रूप मॆं रहता है विशेष क्रिया द्वारा यह स्वर्ण का रूप ले लेता है. इसको ठोस करना अत्यंत जटिल है.
स्फटिक लिंग
स्फटिक कॊ शुक्र ग्रह का कारक माना गया है. शुक्र ग्रह पर लक्ष्मी माता का वास मना गया है. शुक्र ग्रह पर भगवान शिव की विशेष कृपा है उनके लिंग से निकलने के कारण शिवजी ने उन्हें अपना पुत्र भी माना है. इसीलिये स्फटिक लिंग के पूजन से धनधान्य की वृध्दि होती है. मां लक्ष्मी की कृपा होती है.
कैसे करें स्थापना
एक बात हमेशा ध्यान रखें यदिआपने घर मॆं किसी देवता की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और उनकी पूजन पाठ मॆं ध्यान नहीं दे पाये तो उस देव के कोप का ऐसा ही सामना करना पड़ेगा जैसे घर मॆं किसी कॊ बुलाकर उसका ध्यान न देना, इसलिये प्राण प्रतिष्ठा न करायें. मंदिर मॆं ही जाकर पूजन करें. घर में पारद लिंग या स्फटिक लिंग है तो गंगा जल, विल्व पत्र से अभिषेक करें यदि सामर्थ्य हो तो सप्ताह मॆं एक दिन वैदिक ब्राह्मण से पूजन करायें तभी लाभ मिलेगा. महाशिवरात्रि के दिन गंगा, नर्मदा या अन्य पवित्र नदियों के जल से शिवअभिषेक करें. विल्व पत्र, धतूरा, भांग अर्पण करें.

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