मेहनत उसने भी कम नहीं की थी, पर परिणाम पक्ष में नहीं आया

दिनेश पाठक


यूपी बोर्ड के इण्टर, हाईस्कूल के परीक्षा परिणाम आ गए हैं. अन्य राज्यों के बोर्ड और केन्द्रीय बोर्ड के परिणाम आने वाले हैं. जो बच्चे पास हो जाएँगे, उनका और परिवारीजनों का खुश होना लाजिमी है. जिन्हें कम नंबर मिलते हैं या जो बच्चे किन्हीं कारणों से फेल होते हैं, वहाँ का सीन अच्छा नहीं होता. आज का मेरा कॉलम इसी मुद्दे पर केन्द्रित है.
सरेदस्त, मैं यही कहूँगा कि आपके कम नंबर लाने वाले या फेल हुए बच्चे ने भी मेहनत कम नहीं की थी. वह भी उसी क्लास में था, जहाँ के टॉपर को देखकर आप परेशान है. इसका मतलब तय है कि समस्या स्कूल में नहीं थी, कहीं कुछ और थी, जिस पर आपका ध्यान आज तब गया है, जब परिणाम आपके अनुकूल नहीं आया. मेरा अनुरोध है कि कृपया अपने एक बच्चे की तुलना अपने ही दूसरे बच्चे से भी नहीं करिए, पड़ोसी से तो बिल्कुल नहीं. मैं तजुर्बे के आधार पर कह पा रहा हूँ कि हर बच्चा ख़ास है. जरूरत है उसकी प्रतिभा पहचानने की. जिस दिन उसकी पहचान हो गई, समस्या ख़त्म. ऊपर वाले ने हर बच्चे को ख़ास ही बनाकर भेजा है. समय से उसमें छिपी प्रतिभा की  पहचान करना, उसी के अनुरूप सुविधाएँ जुटाना और बच्चे को ढालना, यह माता-पिता की जिम्मेदारी है.
अब कृपा करके अपना समय न याद करिएगा. वह नहीं लौटकर आने वाला. आप जब छोटे थे तो माता-पिता से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका में दादा-दादी, नाना-नानी, ताऊ-ताई थे. अब यह सभी रिश्ते नसीब वालों को ही नसीब होते हैं. उस जमाने में मोहल्ले या गाँव का भी कोई बड़ा बुजुर्ग बच्चे को दो थप्पड़ लगा देता था किसी गलती पर. पर, आज अगर किसी ने ऐसा किया तो आप मारपीट पर आमादा हो जाओगे.
ऐसे में आपको अंदाजा भी नहीं होगा कि उन रिश्तों के होते हुए बच्चे कैसे बड़ी-बड़ी गलतियाँ करने से पहले ही पकड़ में आ जाते थे. अब सब कुछ आप ही को करना है. मतलब, मम्मी-पापा को. इन पर भी कई तरह के दबाव हैं. कहीं दोनों नौकरीपेशा हैं तब तो और आफत. एक है तो कुछ हद तक गनीमत है. कम से कम कुछ चीजों पर सीधी नजर रहती है. आजकल अपने बच्चों से दोस्ती का फैशन चल पड़ा है. पर, यह हो नहीं पाता. क्योंकि जैसे बच्चा कोई गड़बड़ करता हुआ दिखता है, आपके अंदर से दोस्त गायब हो जाता है और मम्मी-पापा हाजिर. यह बात बच्चे जानते हैं. ऐसे में सावधानी की जरूरत है. बिगड़ा अभी भी कुछ नहीं है.
परीक्षा परिणाम अच्छे आये हैं तो आप निश्चित उसे बढ़ाई दीजिए. मिठाई खाइए, खिलाइए. मोहल्ले में बाँटिए. जी बच्चे का परिणाम उसके पक्ष में नहीं आया है, उनके माता पिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती हैं. आप भी उसे मिठाई खिलाइए. बन पड़े तो रेस्तराँ तक ले जाइए. परिणाम की चर्चा बिल्कुल मत करिए और हाँ, दोस्तों, पड़ोसियों की चिंता भी छोड़ दीजिए. आपके बिना कुछ कहे बच्चा अपनी जिम्मेदारी महसूस करेगा. एक-दो दिन बीतने के बाद उसे प्रेरित करिए कि वह देखे कि चूक हुई कहाँ? और अगले साल तैयारी करने के लिए कहिए. ध्यान रहे, बच्चा आपका है तो उसके किसी भी सुख-दुःख के लिए आप फिलवक्त जिम्मेदार हैं. ऐसे में सावधानी आपको ज्यादा बरतनी है. एक मामूली चूक भारी पड़ सकती है. जीवन भर पछताना पड़ सकता है. कल आप सो रहे थे, कोई नहीं. अब जागिए. एक साल का समय कुछ नहीं होता. सबकुछ ठीक हो जाएगा. भरोसा करिए. मेरी गारंटी है.     

लेखक करियर/पेरेंटिंग/चाइल्ड काउंसलर हैं. आप इन्हें सीधे कनेक्ट कर सकते हैं.
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