सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?
पिछले सप्ताह मैं यूपी दूरदर्शन के लोकप्रिय
कार्यक्रम ‘नमस्ते यूपी’ का हिस्सा था. अभिभावक दिवस के बहाने घर-परिवार,
पैरेंटिंग आदि पर खूब बातें हुईं. इस शो की खासियत यह है कि दर्शक फोन पर सवाल भी
पूछ सकते हैं. इसी क्रम में कई सवाल आए. इन सभी का जवाब भी दिया गया. इन्हीं में
से एक सवाल ऐसा था जिस पर समय की वजह से ज्यादा चर्चा नहीं हो पाई लेकिन है यह
बहुत बड़ी समस्या. बस कुछ लोग इस समस्या को चिन्हित कर लेते हैं और कुछ ऊपर वाले के
भरोसे छोड़ देते हैं. एक माँ ने सवाल पूछा कि उनका 10 वर्ष का बेटा बहुत गुमशुम
रहता है. जल्दी से किसी से घुल-मिल नहीं पाता. बात भी नहीं करता.
अब यह समस्या बहुत कॉमन होती जा रही है. इससे
हमें अपने बच्चे को बचाना भी होगा. पहले के जमाने में बच्चों के पास घर के अंदर
रुकने का कोई कारण नहीं होता था. वे स्कूल से आते, कुछ खाते-पीते और खेलने के लिए
निकल जाते. आजकल देहात हो या शहर, घर के अंदर रुकने के बहुत से कारण मौजूद हैं.
टीवी, मोबाइल, लैपटॉप, वीडियो गेम जैसे अनेक चीजें उपलब्ध हैं. बच्चा स्कूल से
लौटकर इनमें उलझ जाता है तो फिर उसे घर से बाहर जाकर खेलने की फुर्सत ही नहीं
मिलती या कहिए कि वह जाना ही नहीं चाहता. मम्मी-पापा भी घर में शान्ति देख खुश हो
जाते हैं. और जब ध्यान जाता है तब काफी देर हो चुकी होती है.
असल में ज्यादातर केस में समस्या की शुरुआत यहीं
से होती है. तकनीकी चीजों में उलझा बच्चा खुद से भी बात नहीं करता. मम्मी-पापा से
उसकी बात खाना-पीना, कापी-किताब, चाकलेट-आइसक्रीम जैसी चीजों के लिए होती है. धीरे-धीरे
वह अपनी एक अलग दुनिया बना लेता है. और मोहल्ले के बच्चों से, अंकल-आंटी से, दादा-दादी,
नाना-नानी जैसे रिश्तों से कटने लगता है. ध्यान रखना होगा कि बच्चे को सुविधाएं
सारी दीजिए लेकिन उसे रिश्तों की वैल्यू भी समझाना होगा. बताना होगा. घर से बाहर
भेजने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपका बच्चा मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलेगा.
लड़ाई करेगा. बतकही होगी. वह खुलेगा. फिजिकल फिटनेस के साथ ही मेंटल फिटनेस भी ठीक
रहेगा. ऐसी लाइफ जीने वाले बच्चों के ज्यादातर केस में कम बोलने की समस्या नहीं
आती. ऐसे बच्चे प्रायः वोकल होते हैं.
अगर इन तथ्यों के आलोक में भी कोई बच्चा कम बोल
रहा है तो तुरंत संभलने की जरूरत है. उसके साथ सबसे पहले मम्मी-पापा समय गुजारें.
खूब बातें करें. अपने बच्चे के मन की बात करें. घर से बाहर लेकर जाएँ. पार्क में.
बाजार में. कोशिश हो कि स्थान का चयन ऐसा हो जहाँ बच्चे के हमउम्र भी हों. मसलन,
आप किसी पार्क में जाएँ तो चिल्ड्रेन्स एरिया में ही जाएँ. प्रयास करें कि बच्चा
वहाँ चल रही गतिविधियों में इन्वाल्व हो. एक-दो दिन में हो सकता है, बात न बने
लेकिन इसे आदत में बना लेंगे तो बात बन जाएगी. अगर बच्चा खुलकर बोलेगा, बात करेगा
तो बहुत सारी असुविधाओं से आप बरबस बच जाएंगे. आगे उसका जीवन सहज रहेगा. अंतर्मुखी
बच्चों के साथ कई बार विकट समस्या आती है. कई बार ऐसे बच्चे बड़ी से बड़ी समस्या की
चर्चा घर में नहीं करते.
जबकि मम्मी-पापा के लिए बहुत जरुरी है कि बच्चे
के जीवन में क्या चल रहा है, वे जानें. ख़ास तौर से तब, जब बच्चा छोटा हो. वह चाहे
बेटी हो या बेटा. ऐसे में अगर आप का बच्चा गुमशुम है. कम बात कर रहा है तो कृपया
सावधान हो जाएँ. 15 वर्ष के बाद अगर आप कोई भी नई प्रेक्टिस करने की कोशिश करोगे
तो बात नहीं बनेगी. इसे हमें छोटी उम्र में ही आंकना होगा.
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