म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के...रोको मत, उड़ने दो
दिनेश पाठक |
मैं एक बच्ची से मिला, जो दिल्ली विश्वविद्यालय
से इंग्लिश आनर्स कर रही है लेकिन कन्फ्यूज है कि आगे का करियर पाथ क्या चुने वह?
कैसे आगे बढ़े? मैंने समझने का प्रयास किया तो पता यह चला कि यह बेटी शुरू से ही
मेधावी है| कहीं कोई दिक्कत नहीं उसके जीवन में| घंटे भर बातचीत करने के बाद यह
जरुर पता चला कि यह छात्रा आगे की पढ़ाई कहीं बाहर से करना चाहती है और उसके पिताजी
चाहते हैं कि वह पढ़े जितना चाहे लेकिन देश में ही रहकर| विदेश न जाए|
असल में बेटी माँ के साथ आई थी| लेकिन वह माँ के
सामने बात नहीं करना चाहती थी| उसका मन रखने के लिए माँ को थोड़ी दूर बैठाने के बाद
बातचीत शुरू की| तय हुआ कि यह बेटी इंग्लिश से ही मास्टर्स करेगी और फिर पीएचडी
भी| किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनेगी लेकिन उसकी मंजिल प्रोफ़ेसर बनना
नहीं है| उसके मन में काउंसिलिंग को लेकर जद्दोजहद चल रहा है| मैंने अपनी समझ से
उसे यह कहा कि सब कुछ दो चरण में करे| पहले चरण में प्रोफ़ेसर बनने का रास्ता साफ़
करे और फिर काउंसलिंग के बारे में सोचे| यह सब होने के बावजूद उसके चेहरे पर मैं
ख़ुशी नहीं देख प् रहा था| उसने कहा भी कि अब मेरा कन्फ्यूजन दूर हो गया फिर भी| देश
के अंदर और देश के बाहर पढ़ने में बाधा बनने की बात माँ से बातचीत में पता चली| तब
मैंने इस बच्ची से कहा कि तुम अभी पढ़ो| पापा से बात करो| मम्मी तुम्हारी मदद
करेंगी| बात बनती नहीं दिखे तो मैं भी पापा से बातचीत करूँगा और उन्हें तुम्हारी
मंशा के अनुरूप आगे की पढ़ाई के लिए तैयार करूँगा| यह बात मुझे कई बार कहनी पड़ी फिर
इस बेटी के चेहरे पर ख़ुशी दिखी|
इस परिवार में दो बेटियाँ और मम्मी-पापा हैं|
अपना सफल व्यापार है| बड़ी बेटी ही मेरे पास थी| छोटी 10 वीं में है| माँ-बेटी से
बातचीत करने पर एक टिपिकल हिन्दुस्तानी परिवार की कहानी समझ आई| इस परिवार के
मुखिया का कोई भाई नहीं है| बेटा भी नहीं है| उन्हें आशंका है कि कहीं बेटी विदेश
पढ़ने जाए तो वहीँ की होकर न रह जाए| जबकि इस पिता पर शक करना नादानी होगी, जब वे
अपने जिगर के टुकड़े को पहली दफ़ा गोरखपुर से दिल्ली भेजने को तैयार हो गए और उसे घर
से बाहर रहकर पढ़ाई करने का दो साल का तजुर्बा होगा तो अब उनकी मानसिक दिक्कतें
पहले से जरुर कुछ कम हुई होंगी| पर, पिता आखिर पिता ही है| बातचीत में मुझे यह भी
महसूस हुआ कि पापा को यह भी लगता है कि बेटी देश में पढ़ेगी तो संभव है कि उनके
व्यापार को आगे बढ़ाने में मददगार हो| पूरे परिवार पर इस बात गम तारी है कि उनका
कोई बेटा नहीं है|
मुझे लगता है कि जब इतनी होनहार बेटियाँ हों तो
किसी भी पिता को टेंशन फ्री हो जाना चाहिए| और इस पिता को तो एकदम हो जाना चाहिए,
जिसकी बेटी के दिमाग में भी यह बात हो कि उसी वजह से पापा को तकलीफ नहीं होनी
चाहिए| यह होनहार हर हाल में पापा की मदद करना भी चाहती है लेकिन अपने मन का सुनना
भी उसके लिए जरुरी है| इतना सोचने वाली बेटी दुनिया के किसी भी कोने में रहेगी लेकिन
वह मंजिल से भटकेगी नहीं| ऐसा मेरा विश्वास है| इस बच्ची को आगे की पढ़ाई उसके
मनमुताबिक कराने की सिफारिश मैं किसी भी माता-पिता से करूँगा| आमिर की फिल्म दंगल
का एक डायलाग याद आता है-म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के...जो पापा को टेंशन
हो| नहीं| बिल्कुल नहीं| इस बच्ची को भी उड़ने की इजाजत मिलनी चाहिए| मैंने उससे वायदा
किया है कि जरूरत पड़ी तो उसके पापा से मैं मिलूँगा और उन्हें बच्ची की जिद पूरी करने
को मना लूँगा| और अगर आप भी किसी ऐसे असमंजस के शिकार हैं तो बेटी पर भरोसा करें|
वह आपको निराश नहीं करेंगी| जीवन का अनुभव कहता है कि माता-पिता की जरूरत पर बेटियाँ
हमेशा, बेटों से आगे देखी जा रही हैं|
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