एथलीट हिमा दास की कहानी बहुत रोचक है और प्रेरणादायी भी

दिनेश पाठक



नाम-हिमा दास| उम्र-सिर्फ 18 आल| काम-एथलीट| उपलब्धि-एक ही शॉट सभी धुरंधरों के रिकार्ड तोड़ देना, अपना नया रिकार्ड बनाना और पूरी दुनिया में छा जाना| अभी चार दिन पहले तक इस हिमा दास को उसके गाँव के लोग और कोच निपुण दास ही जानते थे| अब पूरी दुनिया जानती है| कापी लिखे जाने तक ट्विटर पर हिमा को फॉलो करने वालों की संख्या 53 हजार से ज्यादा थी और ट्विट की संख्या सिर्फ नौ लेकिन देश उस पर न्योछावर है|
असम के नौगाँव जिले के एक गाँव में रहने वाली इस हिमा की कहानी बहुत रोचक और प्रेरणादायी है| यह कहानी बहानेबाजों के मुँह पर तमाचा है और कुछ कर गुजरने वालों के लिए प्रेरणा| ठीक डेढ़ साल पहले तक हिमा को केवल उसके अपने गाँव के लोग जानते थे| क्योंकि यह लड़की गाँव में अपने भाइयों के साथ फुटबाल खेलती थी| खेतों में तेज भागती थी| दौड़ना उसके जीवन से जुड़ा हुआ था| खेती-किसानी कर जीवन यापन करने वाले पिता के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वे अपनी इस बहादुर बेटी को कहीं बाहर भेज सकें| वह एक कैम्प में हिस्सा लेने गुवाहाटी आई थी| वहीँ हिमा पर कोच निपुण दास की नजर पड़ी| उन्होंने इस बच्ची की प्रतिभा को पहचान लिया| वे हिम के गाँव पहुँच गए और उसे ट्रेनिंग देने की पेशकश की| मजबूर पिता ने आर्थिक तंगी की वजह से असमर्थता दिखाई| तब इस कोच ने उनकी यह समस्या भी हल कर दी और उसके रहने-खाने का खर्च खुद उठाने को तैयार हो गए| फिर परिवार से उसे गुवाहाटी आने की अनुमति मिल गई|
गोल्डन गर्ल एथलीट हिमा दास

फिर निपुण दास ने हिमा को तराशना शुरू किया| नियमित कड़ा अभ्यास, तकनीक की जानकारी हासिल करना हिमा के जीवन का हिस्सा बन गया| ऐसा भी नहीं है कि हिमा को यह कामयाबी रातों-रात मिली हो| उसने खूब संघर्ष किया| अनेक प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया| हारी भी और जीती भी| कभी सातवें तो कभी छठें स्थान पर आई| लेकिन इस हिमा की जो खासियत अभी तक सामने आई है, वह यह कि उसने अपनी हर गलती से सीखा है| इसीलिए प्रतिस्पर्धा-दर-प्रतिस्पर्धा वह निखरती गई| और फिर फ़िनलैंड के टेम्पेयर शहर में हिमा ने वह इतिहास रच दिया जो अब तक किसी भी भारतीय महिला या पुरुष ने नहीं रचा था|   
हिमा के परिवार में कुल 16 सदस्य हैं| वह गाँव और आसपास फुटबाल खेलकर कुछ पैसे भी कमा लेती थी| यह पूरा परिवार अपने खाने भर का जुगाड़ तो कर लेता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं| बाढ़ ग्रस्त इलाके में निवास करने की वजह से यहाँ अलग तरह की दिक्कतों का सामना भी यहाँ के लोगों को करना पड़ता है| इतनी दिक्कतों के बावजूद हिमा का इस मुकाम पर पहुँचना निश्चित उसकी मेहनत की कहानी को बयाँ करता है| इस कहानी से देश का कोई भी नौजवान सीख ले सकता है| लोग कहते हैं न कि मंजिलें होती हैं, लक्ष्य होता है तो उसे हासिल करने के रास्ते भी बन जाते हैं| जैसे हिमा को निपुण दास का साथ मिला, वैसे ही मंजिलें आप का इंतजार कर रही हैं| सच्ची लगन, पूर्ण इच्छाशक्ति के साथ अपनी मुहिम में जुटिये| और हाँ, बहाने बनाने की जरूरत भी नहीं है| मैं तो सिर्फ एक हिमा की कहानी यहाँ बता रहा हूँ, अपना देश तो संभावनाओं से भरा हुआ है| यहाँ हर क्षेत्र में कई-कई हिमा दास हैं, जिनसे आपको प्रेरणा मिल सकती है| आप ले सकते हैं| स्वामी विवेकानंद जी कहते थे-उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल न मिल जाए| हिमा ने भी वही किया| अभी अनेक रिकार्ड बनाएगी, तोड़ेगी और देश का नाम रोशन करेगी| क्योंकि उसकी उम्र बहुत कम है| मेरी शुभकामनाएँ हिमा को, कि वह एक नया रिकार्ड बनाए और उसकी तरह देश के नौजवानों को कि उठो, जागो और भागो, मंजिल तुम्हारा इन्तजार कर रही है|  
लेखक चाइल्ड/ पैरेंटिंग/ करियर काउंसलर हैं| आप सीधे संपर्क कर अपनी जिज्ञासा शांत कर सकते हैं|
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