इस ज्योति का आत्मविश्वास तो देखिए, आप का नजरिया बदल जाएगा
दिनेश पाठक |
मेरे मित्र हैं हास्य कवि सर्वेश अस्थाना|
वे बेहतरीन इंसान भी हैं| वे बच्चों की भलाई के लिए काम करते रहते हैं, इसलिए मुझे
कुछ ज्यादा ही प्रिय है| हालाँकि, यह सम्मान एकतरफा नहीं है| वे भी मुझे लौटाते
ज्यादा हैं| वे प्रति वर्ष की तरह इस इस साल भी बाल उत्सव का आयोजन कर रहे हैं| इस
उत्सव में बच्चों की भांति-भांति की प्रतियोगिताएं होती हैं| उन्हें पुरस्कार दिए
जाते हैं| लगभग दस दिनी यह आयोजन लखनऊ में ठीक से जाना भी जाता है|
इस आयोजन में मेरा भी जाना हुआ| जो मैंने
देखा, महसूस किया, उसे ही आपके सामने परोस रहा हूँ| बड़ा गौरव महसूस हुआ| 29 अगस्त, 2018 की बात है| बाल उत्सव में दृष्टि बाधित बच्चों का कार्यक्रम तय था| शहर के तमाम बच्चों की प्रस्तुति होनी थी। बच्चे अपने अभिभावकों के साथ एक-एक कर चले आ रहे थे। इसी क्रम में 10- वर्ष की एक ख़ास बच्ची आती हुई दिखी| यह
बहादुर राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह
के बाहर सीढियां
चढ़ने का प्रयास कर रही थी| उनका आंकलन कर रही थी| तभी सर्वेश जी उस बच्ची की मदद
के इरादे से पहुँच गए| उन्होंने आवाज दी, बेटा मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ। इस मासूम ने कहा-नो थैंक्स अंकल, मैं सीढियां चढ़ जाऊँगी|
सर्वेश जी ने फिर पहल की...कोई बात नही, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ| बच्ची ने फिर जवाब दिया-
नहीं अंकल, मुझे खुद कोशिश करने दीजिए| मैं कर सकती हूँ। यह कहते इस बच्ची ने न केवल सीढ़ी तलाश ली बल्कि पहला पैर भी चढ़ा दिया| फिर दूसरी और तीसरी सीढ़ी चढ़ते हुए वह आगे बढ़ने लगी| अब उसे ऑडिटोरियम में जाना था। सर्वेश जी ने फिर उसे मदद की पेशकश की| उसने उनकी मदद का जवाब तो नहीं दिया लेकिन एक सवाल दाग दिया...ऑडी किधर है? मतलब वह सिर्फ आडिटोरियम का रास्ता पूछना चाहती थी| लेकिन सर्वेश जी उस बच्ची की मदद करने पर आमादा थे| वे खुद भी पिता हैं तो मन बरबस व्याकुल हो रहा था| उनकी चिंता थी कि बच्ची को चोट न लग जाए| उसका कार्यक्रम इस वजह से खराब न हो जाए...आदि...आदि सवाल उनके जेहन में रहे होंगे|
उन्होंने अपना हाथ बढ़ा दिया और बोले-लो मेरा हाथ पकड़ो, मैं तुम्हे अंदर पहुंचाता हूँ-उन्होंने अपने बच्ची की तरह बहुत आत्मीय भाव से कहा। इस बार बच्ची ने सख्ती से कहा-नहीं-नहीं मैं खुद चली जाऊँगी, आप बस मुझे बताइये जाना किधर है? ठीक सामने चलो आगे बढ़कर लगभग 20 कदम बाद बायीं तरफ ऑडिटोरियम का गेट है-सर्वेश जी ने कहा| बच्ची ने थैंक यू बोला और आगे बढ़ गई| स्वाभाविक है कि उसकी स्पीड तेज तो थी नहीं| उसे दिखाई नहीं दे रहा था| वह यहाँ पहली बार आई थी| ऐसे में जगह भी नई थी उसके लिए|
सर्वेश जी ने फिर पहल की...कोई बात नही, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ| बच्ची ने फिर जवाब दिया-
नहीं अंकल, मुझे खुद कोशिश करने दीजिए| मैं कर सकती हूँ। यह कहते इस बच्ची ने न केवल सीढ़ी तलाश ली बल्कि पहला पैर भी चढ़ा दिया| फिर दूसरी और तीसरी सीढ़ी चढ़ते हुए वह आगे बढ़ने लगी| अब उसे ऑडिटोरियम में जाना था। सर्वेश जी ने फिर उसे मदद की पेशकश की| उसने उनकी मदद का जवाब तो नहीं दिया लेकिन एक सवाल दाग दिया...ऑडी किधर है? मतलब वह सिर्फ आडिटोरियम का रास्ता पूछना चाहती थी| लेकिन सर्वेश जी उस बच्ची की मदद करने पर आमादा थे| वे खुद भी पिता हैं तो मन बरबस व्याकुल हो रहा था| उनकी चिंता थी कि बच्ची को चोट न लग जाए| उसका कार्यक्रम इस वजह से खराब न हो जाए...आदि...आदि सवाल उनके जेहन में रहे होंगे|
उन्होंने अपना हाथ बढ़ा दिया और बोले-लो मेरा हाथ पकड़ो, मैं तुम्हे अंदर पहुंचाता हूँ-उन्होंने अपने बच्ची की तरह बहुत आत्मीय भाव से कहा। इस बार बच्ची ने सख्ती से कहा-नहीं-नहीं मैं खुद चली जाऊँगी, आप बस मुझे बताइये जाना किधर है? ठीक सामने चलो आगे बढ़कर लगभग 20 कदम बाद बायीं तरफ ऑडिटोरियम का गेट है-सर्वेश जी ने कहा| बच्ची ने थैंक यू बोला और आगे बढ़ गई| स्वाभाविक है कि उसकी स्पीड तेज तो थी नहीं| उसे दिखाई नहीं दे रहा था| वह यहाँ पहली बार आई थी| ऐसे में जगह भी नई थी उसके लिए|
सर्वेश जी फिर लपक
कर उसके पास पहुँच गए| बोले-तुम इस ऑडिटोरियम में पहली बार आयी
हो| आओ मैं ठीक से पहुँचा दूँ| उसने जो जवाब दिया...वह सर्वेश जी को ही नहीं, वहाँ मौजूद
बहुतों को अजीब लगा| उसने कहा-अंकल प्लीज डोंट बिहैव लाइक दिस! आप
मेरी मदद करके मुझे कमज़ोर बना रहे हैं। मुझ पर दया मत कीजिये| मुझे सबके समान समझिये। मेरी मम्मी
ने अपना काम खुद करने की ट्रेनिंग दी है| सर्वेश जी
ने सॉरी बोला और कहा-बेटा गेट आगे है| आप जाओ|
वो बच्ची आगे बढ़ गयी और मंज़िल तक पहुँच भी गई| आयोजक होने के नाते सर्वेश जी फिर गेट की और चल पड़े| एक भद्र महिला वहीँ खड़े-खड़े उन्हें देख रही थीं| पास पहुंचे तो बोलीं- अस्थाना सर! वो मेरी बेटी है। और मैं उसको स्ट्रांग और सेल्फ डिपेंड बनाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ। सर्वेश जी ने उन्हें बधाई दी और इस तरीके को सराहा| थोड़ी देर बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। अनाउंसर ने उद्घोषणा की- अब अपने अंतर्मन से सब समझने वाले और अंतर्दृष्टि से सब देखने वाले बच्चों का समूह नृत्य पेश करने जा रहे हैं, जिसकी कोरियोग्राफर और डांस लीडर है-ज्योति। यह ज्योति वही बच्ची थी जिसने सर्वेश जी की मदद लेने से इनकार कर दिया था।
वो बच्ची आगे बढ़ गयी और मंज़िल तक पहुँच भी गई| आयोजक होने के नाते सर्वेश जी फिर गेट की और चल पड़े| एक भद्र महिला वहीँ खड़े-खड़े उन्हें देख रही थीं| पास पहुंचे तो बोलीं- अस्थाना सर! वो मेरी बेटी है। और मैं उसको स्ट्रांग और सेल्फ डिपेंड बनाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ। सर्वेश जी ने उन्हें बधाई दी और इस तरीके को सराहा| थोड़ी देर बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। अनाउंसर ने उद्घोषणा की- अब अपने अंतर्मन से सब समझने वाले और अंतर्दृष्टि से सब देखने वाले बच्चों का समूह नृत्य पेश करने जा रहे हैं, जिसकी कोरियोग्राफर और डांस लीडर है-ज्योति। यह ज्योति वही बच्ची थी जिसने सर्वेश जी की मदद लेने से इनकार कर दिया था।
इस कहानी को यहाँ साझा करने के पीछे मंशा उन
लोगों को प्रेरित करने की है, जिनकी दोनों आँखें दुरुस्त हैं| वे देख सकते हैं|
समझ सकते हैं| खुली आँखों से अपने सपनों में रंग भर सकते हैं, लेकिन उनके पास
बहानों की कोई कमी नहीं है| कभी मम्मी-पापा तो कभी रिश्तेदार या संसाधनों का रोना
रोने वालों के लिए ज्योति वाकई ज्योति है, जिसके साथ माँ थीं| सर्वेश जी जैसे मदद
को आतुर अंकल थे लेकिन उसने कोई मदद नहीं ली बल्कि प्रेरित कर गई कि वह अपना काम
खुद करेगी| उसे उसकी माँ ने यही सिखाया है| ज्योति को मेरा भी सलाम| बहुत आशीष|
तुम जीवन में जो चाहो, तुम्हें मिले, यही दुआ|
Comments
Post a Comment