अगर आप भी हैं इस रोग के शिकार तो सावधान हो जाएँ
दिनेश पाठक |
आज एक ऐसी बीमारी की बात, जिससे ज्यादातर नवधनाड्य
पैरेंट्स पीड़ित तो हैं लेकिन खुश भी हैं| यह अकेला रोग है, जो लोगों को खुशियाँ दे
रहा है| जिसके होने के बावजूद कोई स्वीकार करने तक को तैयार नहीं है| उल्टा अगर
कोई अड़ोसी-पदोई, रिश्तेदार ध्यान दिलाये तो उसे पागल करार देने में ऐसे रोगी पीछे
नहीं रहते| उन्हें रोग के गंभीर होने का पता तब चलता है जब भैंस पानी में जा चुकी
होती है| यह बीमारी है, बच्चों के लालन-पालन में हो रही चूक की| पैसों के दिखावे
के चक्कर में अनजाने में ही सही, ऐसी गलतियाँ कर रहे हैं, जिसका दुष्प्रभाव उनके
जीवन पर गहरे तक पड़ रहा है लेकिन जब तक वे जागते हैं, देर चुकी होती है|
हमारे आसपास अनेक ऐसी कहानियाँ बिखरी पड़ी
हैं| आप आसानी से उनसे बावास्ता हो सकते हैं| जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ ऐसे
पैरेंट्स की जो बच्चों की जरूरत और इच्छाओं के बीच फर्क नहीं करना चाहते क्योंकि
उनकी जेब में अकूत पैसा है| जरूरत हर हाल में पूरी होनी चाहिए लेकिन क्या इच्छा
पूरी होना भी उतना ही जरुरी है| मेरा जवाब है-नहीं| इच्छा का पूरा होना कतई जरुरी
नहीं है| चाहे आपके पास कितना भी पैसा हो| जब हम इच्छा पूरी करने चलते हैं तो जीवन
में बहुत कुछ ऐसा होता है, जो नहीं होना चाहिए| क्योंकि इच्छाएं असीम हैं| उनका
कोई अंत नहीं है, जबकि जरूरतें सीमित हैं| स्कूल, कपडे, जूते-मोज़े, भोजन, यदा-कदा
मनोरंजन आदि...जरूरत की श्रेणी में आते हैं| इसके अलावा जीतनी चीजें हैं, वह सब इच्छाएं
हैं| जब हम अपने छोटे बच्चे को अलग कमरा, अलग कंप्यूटर / लैपटॉप, इंटरनेट की 24
घंटे आजादी, महँगे स्मार्ट फोन देते हैं, यह मानते हुए कि आखिर हम कमा क्यों रहें
हैं, इन्हीं बच्चों के लिए ही तो, तब आप गलती कर रहे होते हैं|
रुपया आप कमा रहे हैं, परिवार की भलाई के
लिए| बच्चों की जरूरतों के लिए| मैं उपरोक्त किसी भी चीज का विरोधी नहीं हूँ|
बच्चे को दीजिए वह सब, लेकिन जरूरत पड़ने पर| जब आप यही सुविधाएं उसके लिए अलग से
जुटाते हैं तो गलती करते हैं| और यह सब कुछ नवधनाड्य कुछ ज्यादा कर रहे हैं| इसे
रोके जाने की जरूरत है| अगर आप ऐसा करते हैं तो आप भविष्य में पश्चाताप करने का
मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं| ध्यान रहे, बच्चे भी आपके हैं और पैसा भी आपका| समय की
माँग है कि इस मसले पर सावधानी बरती जाए| फोन चाहिए, अपना फोन दीजिए| कई फायदे
होंगे| एक-आपको पता होगा, बच्चे ने किस नंबर पर बात की| आप चाहेंगे तो यह भी आसानी
से जान पाएँगे कि क्या बातचीत की| ऐसा करेंगे तो तय मान लीजिए कि वह आपसे फोन
मांगेगा तभी जब बहुत जरूरत होगी, अन्यथा वह बचेगा| मैं बच्चे की मुखबिरी की राय
नहीं दे रहा हूँ| लेकिन नजर तो रखना पड़ेगा| आखिर बच्चा आप ही का है| उसे सख्त
बनाने की जरूरत है| सुविधाभोगी नहीं| दुश्वारियों के बीच लालन-पालन की जरूरत है,
राजा की तरह नहीं|
आपके पास कितना भी पैसा हो, लेकिन बच्चों
को इस बात का एहसास नहीं होना चाहिए कि उनके पैरेंट्स के पास बहुत पैसा है| उन्हें
इस बात का एहसास जरुर होना चाहिए कि पैरेंट्स हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए
बहुत पसीना बहाते हैं| बच्चों को हर छोटी-छोटी जरूरत पूरी करते समय इस बात का एहसास
बहुत जरुरी है| अगर आप कुछ ज्यादा देना चाहते हैं तो समय दीजिये| अपने साथ लेकर
बाजार जाइए| बातें करिए| उन्हें समझिये| दोस्तों के बारे में जानिये| उनके घर लेकर
जाइए| इससे आप अपने बच्चे को ज्यादा जान पाएँगे| जो आपके लिए हर हाल में मददगार
होगा| छोटी उम्र से ऐसा करने पर बड़ा होने पर भी बच्चे को कुछ भी असामान्य नहीं
लगेगा| वह आपसे सब कुछ शेयर करेगा| छोटी से छोटी बात जब आपकी जानकारी में होगी, तो
बच्चे को आप बड़ी से बड़ी समस्या से आसानी से बचा पाएँगे| और यह काम कोई भी अमीर-गरीब
पैरेंट्स कर सकते हैं| आमीन!
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