अगर आप बहानेबाज हैं तो मिलिए हौंसलों वाले युवा राजेश से
मुझे शहर से बाहर जाना था| टैक्सी बुलाई| राजेश यादव सारथी के रूप में मिले| जाते वक्त मैं 90 किलोमीटर की दूरी में बहुत बातचीत इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि मेरे पास काम बहुत था लेकिन गाड़ी में बैठते ही मैंने आदतानुसार तीन सवाल पूछे| एक नाम, दूसरा टैक्सी कब से चला रहे हो और तीसरा रहने वाले कहाँ के हो? राजेश ने सभी सवालों का संक्षिप्त सा जवाब दिया और हम मंजिल की तरफ चल पड़े| दिनेश पाठक लौटते वक्त मेरी बातचीत शुरू हुई| इस नौजवान ने जो कुछ बताया, मुझे लगा कि यह बहानेबाजों के लिए प्रेरणास्रोत है| बात वर्ष 2000 की है| राजेश छठीं क्लास में था| घर में आर्थिक तंगी थी| राजेश ने बुक शॉप पर पार्ट टाइम नौकरी की| वेतन मिलते थे 400 रुपए महीना| तीन भाइयों में सबसे छोटा राजेश नौकरी इसलिए करने लगा क्योंकि पिता जी नादरगंज में एक कारखाने में काम करते हैं| घर की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं| बकौल राजेश, मेरे दोनों बड़े भाई पढ़ने में ठीक थे और मैं फिसड्डी| इसलिए जब भी जरूरत होती मैं बुक शॉप से एडवांस लेकर भाइयों की मदद करता| चूँकि, शॉप के मालिक मुझे बहुत मानते थे, इसलिए वे आसानी से पैसे दे दिया करते थे| फ...