उम्मीद एक : उम्मीदों पर दुनिया कायम है...इसे पकड़ कर रखें

उम्मीद खुद से| बच्चों से| पत्नी से| समाज से| दोस्तों से| सहकर्मियों से| मम्मी से| पापा से| नाना से| नानी से| दादा से| दादी से होती ही है| कोई माने या न माने, पर यही उम्मीद हमें रोज नई ऊर्जा देती है| जब कभी किसी से यही उम्मीद टूट जाती है तो हम कई बार निराश होते हैं, लेकिन जीवन यहीं ख़त्म नहीं होता| सीखने का एक नया द्वार यहीं से खुलता है|
दिनेश पाठक

जब कहीं से उम्मीद टूटकर बिखरती है तो कहीं और एक नई उम्मीद बाहें फैलाए खड़ी भी दिखती है| बस खुली आँखों से हमें देखना आना चाहिए| अगर उम्मीदों को झटका न लगे तो हम शायद अतिरिक्त प्रयास करना भी छोड़ देंगे| वो बड़े-बुजुर्ग कहते हैं न, प्लान ए फेल हो तो प्लान बी तैयार रखो| बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउसेज तो प्लान सी की बात भी करने लगे हैं| असल में मैं कोई जीवन के फ़लसफ़े पर बात नहीं करने जा रहा हूँ| मैं इसी उम्मीद के सहारे बात करने वाला हूँ आपकी सबसे प्रिय संतान के बारे में| वो चाहे बेटी हो या बेटा| होते तो ये दिल के बेहद करीब हैं| उसकी गलतियों पर आप उसे चाहे फटकारें, डांटे, पिटाई-कुटाई करें लेकिन बेइंतहाँ प्यार उसे तब तक करते हैं, जब तक आपको वह उम्मीदों से है| इसी वजह से कई बार पिटाई करने के बाद आप उसे खुद ही मनाते हैं| खाना खिलाते हैं| बाजार ले जाते हैं| चॉकलेट, आइसक्रीम रुपी रिश्वत भी देते हैं|
कलेजे के इसी टुकड़े को आप तनिक भी तकलीफ में नहीं देखना चाहते| इसी वजह कई बार तो माँ हँसते-मुस्कुराते अपना खाना तक बच्चों को खिला देती है| बच्चों को तो याद भी नहीं होता जब वे कड़ाके की ठण्ड में बिस्तर गीला करते हैं और माँ उन्हें खिसका कर सूखे में सुला खुद तिरछा करवट लेकर गीले में सो जाती है| लाख तकलीफ़ में रहने वाला पिता अपने लाल को वह सब कुछ देना चाहता है, जो कई बार उसके बस में भी नहीं होता| पर, यही बच्चे जब उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते तो माँ को भी तकलीफ़ होती है और पिता को भी| अन्य नाते-रिश्ते भी उम्मीदों के टूटने पर तकलीफ में आते हैं| इस बेहद खुशनुमा फलक के माध्यम से हम प्रयास करने जा रहे हैं कि ये उम्मीदें पहले तो टूटने ही न पाएँ| मायने पूरी हों लेकिन सर्वविदित है कि शत-प्रतिशत वैसा नहीं होता, जैसा हम चाहते हैं| ठीक उसी तरह जैसे एक टीचर पूरी क्लास को दिल से पढ़ाता है लेकिन टॉपर कोई एक-दो ही होते हैं| इसका मतलब कहीं न कहीं कुछ ऐसा है, जिसका सामंजस्य बैठाया जाना बहुत जरुरी है| अगर बैठ गया तो हमारी और आपकी उम्मीदें टूटने नहीं पाएँगी|

मैं कुछ ऐसी कोशिश करूँगा कि संतानों को लेकर हमारी और आपकी उम्मीदें टूटने न पाएँ| कड़ी-दर-कड़ी आपके सामने परोसे जाने वाली कहानियों के रूप में आती जाएँगी| हमारा मकसद आने वाली पीढ़ी को उनके मम्मी-पापा, दादा-दादी, नाना-नानी की मदद से उचित रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करना है तो बच्चों के लालन-पालन में आ रही दुश्वारियों से सभी को सजग करना भी है| हम मिलकर इस समस्या का निदान निकालने में कामयाब होंगे, ऐसी उम्मीद मुझे भी है| इस कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल युग ने बहुत घालमेल कर रखा है| ना...ना...मैं उनका विरोध नहीं कर रहा हूँ| मैं तो उनके साथ चलने की बात कर रहा हूँ| लालन-पालन आपका और स्वस्थ भारत के लिए एक स्वस्थ, समझदार, ईमानदार युवा तैयार करने में मदद करना मेरा लक्ष्य है| 

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