उम्मीद चार : मम्मी-पापा ने अपनी टीना को सोते-जागते कब देखा?
सर्वेंट
क्वार्टर के आँगन में एक खूबसूरत सा घर बनकर तैयार है| मिटटी, फूस, लकड़ी के सहारे
इसे सुरभि ने अपने हाथों से बनाया है| माँ से मिली सीख के सहारे तैयार यह नन्हा सा
दीवाली वाला घर वाकई बेहतरीन बन पड़ा है| अब इस नए घर के आँगन में भी दीवाली वाले
दिन पकवान बनेंगे| इसे बनाएगी सुरभि, अपनी मम्मी की मदद से|
दिनेश पाठक |
जो
लोग गाँव से हैं या शहरों में पुरानी आबादी के बीच रहते हैं| जहाँ अभी भी घर-आँगन
बचे हुए हैं, वहाँ दीवाली के लिए छोटे घर बनाने की परम्परा है| घर के छोटे बच्चे
इस घर को बनाते भी हैं और सजाते भी हैं| मिट्टी के बर्तन में कुछ न कुछ खाना बनाने
की परम्परा भी रही है|
खैर,
इन्हीं व्यस्तताओं की वजह से तीन-चार दिन से सुरभि-टीना की मुलाकात नहीं हो पाई
थी| बेचैन टीना सीधे वहीँ आ धमकी| छोटा सा घर देखकर टीना उछल पड़ी| उसने कहा..सुरभि
बहुत बढ़िया घर बनाया तुमने| हाँ यार, इसीलिए तुमसे मुलाकात भी नहीं हो पाई, सुरभि
ने कहा| कोई नहीं चलो, अब खेलते हैं|
सुरभि
ने कहा-बस थोड़ी देर खेलेंगे| क्योंकि मुझे पूरे घर की सफाई करनी है| माँ तो कोठी
के काम में व्यस्त है, इसलिए यहाँ की सफाई मुझे ही करनी है| दीवाली पर घर का हर
कोना साफ़ होना चाहिए| नहीं तो लक्ष्मी जी नाराज हो जाती हैं, ऐसा माँ कहती हैं|
टीना खुश हो गई| दोनों ने आँगन में ही खेल-कूद शुरू किया| गाड़ी का हार्न सुनकर
टीना सीधे गेट की ओर भागी| उसने सुरभि को बताया कि पापा दो हजार रुपए से ज्यादा दीवाली
पर देने को तैयार हो गए हैं| आज उनसे लेने हैं| जल्दी से ले लूँ नहीं तो फिर कहीं
पार्टी में चले जाएँगे और जब तक वापस आएँगे, मैं सो जाऊँगी| सुबह जल्दी स्कूल जाना
है| सुरभि न हाँ में सिर हिला दिया और घर की सफाई में जुट गई|
उधर,
टीना पापा से लिपट गई| घर के अंदर पहुँचते ही उसने पापा से दीवाली के लिए रुपए
मांगे| पापा ने कहा-दे देंगे| टीना जो चाहेगी, दीवाली में उसे देंगे| गाल पर थपकी
देकर पापा कमरे में चले गए| टीना जिद पकड़कर बैठ गई| उसे तुरंत पैसे चाहिए थे| बेटी
को दुखी देख पापा ने उसे इस दीवाली के लिए पांच हजार रुपए इस हिदायत के साथ दिए कि
इन पैसों से जो भी खरीदा जाएगा, वह किसी बड़े के साथ| अकेले नहीं| अब टीना की ख़ुशी
का ठिकाना नहीं रहा| पैसे बैग में रखने के बाद टीना वापस सुरभि के पास पहुँच गई| दोनों
फिर खेलने लगे| देखते-देखते अँधेरा हो गया| कोठी का काम ख़त्म करके सुरभि की माँ भी
आ गई| दोनों बच्चों को खेलते देख खुश हो गई| उन्हें अपना बचपन याद आ गया| दोनों को
चुपचाप देखते हुए उनकी तन्द्रा टूटी तो ख्याल आया कि बहुत काम है|
उन्होंने
सुरभि को आवाज लगाईं| पूछा-सारा काम हो गया| सुरभि ने कहा-नहीं माँ| टीना आ गई न| हम
दोनों खेलने लगे| थोड़ी मस्ती करने लगी| टीना बेबी-आइए मैं आपको कोठी छोड़ दूँ| मेम
साहब नाराज होंगी| आपके नाश्ते का समय भी हो गया है| टीना, दुखी मन से सुरभि को
बाय बोलकर वापस कोठी चली गई| अगले दिन सुरभि माँ के साथ बाजार गई और मिटटी के दिए,
तेल, लावा, चीनी की मिठाई और अपने घर में खाना बनाने के लिए कुछ मिटटी के बर्तन
लेकर आई| तय हुआ कि पूजा के लिए फूल कोठी के बगीचे से उसी दिन ले लेंगे| अगले दिन
स्कूल से आने के बाद ड्राइवर के साथ टीना बाजार गई| उसने सारे पैसे पटाखे में लगा
दिए| ख़ुशी-ख़ुशी घर वापस आ गई| सहेजकर पटाखे रख दिए| पापा-मम्मी का इंतजार करते हुए
सो गई|
अगले
दिन छुट्टी थी| टीना सुबह-सुबह उठी| मम्मी-पापा को अपनी खरीदारी के बारे में बताया
और यह भी कहा कि सारे पटाखे वो अपनी दोस्त सुरभि के साथ जलायेगी| दोनों ने हाँ में
हाँ मिला दिया और यह भी कहा कि पटाखे सावधानी से जलाना होगा| वह भी मेरे सामने|
टीना ने हाँ कहते हुए सिर हिलाया| पापा ने टीना को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी
जानकारी दी कि अब सिर्फ दो घंटे ही पटाखे जलाए जा सकेंगे| टीना ने कहा-पापा, आप
जल्दी आ जाना| आप तो हमेशा लेट ही आते हो| क्या त्यौहार, क्या सामान्य दिन? आपको
याद है कि पिछली बार आपने अपनी टीना को सोते-जागते कब देखा था? नहीं याद है
न...याद करो| दिमाग पर जोर डालो| आप भी और मम्मी भी...
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