उम्मीद पांच : कैसे मनेगी टीना और सुरभि की दीवाली, जानना नहीं चाहेंगे
टीना-सुरभि,
दोनों ही बच्चियाँ दीवाली की तैयारियों में जुटी हुई हैं| सुरभि जहाँ माँ की मदद
से घर में सफाई आदि में जुटी है तो टीना पांच हजार के पटाखे कई दिन पहले लाकर रखी
है| मम्मी-पापा के साथ वो बाजार जाकर अपने लिए कपड़े भी ले आई| पूरे 12 हजार की
ड्रेस लेकर आई है टीना| घर में आते ही वह ड्रेस दिखाने सुरभि के पास दौड़ी| घर में
खिड़की दरवाजे की सफाई में जुटी सुरभि के हाथ गंदे थे| वह भला कैसे छूती? और टीना है
कि आमादा है कि वह हाथ में ले और अपनी राय दे|
दिनेश पाठक |
उसने
काम बंद करने की जिद की| बोली-तुम मेरी इकलौती दोस्त हो जिससे मैं प्यार करती हूँ|
काम बंद करो| हाथ धुलो| और इस ड्रेस को देखो| सुरभि दोस्त की जिद के आगे टूट गई|
भागकर नल के नीचे हाथ धोने लगी| साबुन था नहीं तो हाथ साफ नहीं हुए| फिर मिटटी उठाया
और साबुन की तरह हाथ साफ किया| अब उसका हाथ एकदम साफ था| सुरभि ने कहा-लाओ मेरी
बहना| तुम्हारी ड्रेस देख लूँ| हाथ में
लेते ही सुरभि ने कहा-बहुत सुंदर है| इसमें तो मेरी बहन प्रिंसेज लगेगी, प्रिंसेज|
टीना खुश होकर वापस मुड़ी ही थी कि सवाल दाग दिया..आंटी ने तुम्हारे लिए ड्रेस
खरीदी या नहीं? सुरभि ने कहा-ड्रेस तो नहीं खरीदी अभी हमने, क्योंकि काम से फुर्सत
नहीं मिली न| माँ कोठी में इन दिनों ज्यादा व्यस्त है और मैं घर में| लेकिन दो साल
पहले वाली ड्रेस एकदम नई मेरे पास रखी है| केवल दीवाली पर ही पहनी थी मैंने| इस
बार फिर उसी को पहन लेंगे|
उसने
अपनी मम्मी से टीना की कहानी बताई और एक ड्रेस उसके लिए खरीदने को कहा, जिससे
दोनों एक साथ नई ड्रेस में दीवाली मना सकें| लेकिन उसकी मम्मी ने यह कहकर मना कर
दिया कि उन्हें भरपूर सैलरी मिलती है| रहने को घर दिया है| टीना ने कहा-मम्मी,
आंटी से दिन भर काम भी तो करवाती हो| मैं सोचती हूँ कि अगर वो न होतीं तो क्या
होता इस कोठी का? पूरे 10 हजार देती हूँ हर महीने| यह रकम कम नहीं होती| टीना चुप
हो गई| उधर, कोठी का काम निपटा कर थकी-हारी माँ पहुंची तो उसके सामने सवालों की
बौछार करने लगी सुरभि| माँ हमने कब से दीवाली पर नए कपडे नहीं खरीदे हैं| उसने कहा
जानती हो-टीना की नई ड्रेस 12 हजार की है| उसने मुझसे ड्रेस के बारे में पूछा तो
मैंने बता दिया कि मेरे पास दो साल पहले दीवाली पर खरीदी ड्रेस एकदम से नई रखी है|
वही पहन लेंगे| पर, माँ मुझे पता है कि मैंने झूठ बोला है, जिससे यह बात यहीं ख़त्म
हो| माँ ने उसे गले लगाकर भींच लिया| दोनों माँ-बेटी सुबकने लगे| रात गहरी हो रही
थी| दोनों ने दिन का रखा खाना खाया और बिस्तर में चली गईं|
सुरभि
ने कहा-माँ मुझे यह बताओ कि पिछली दफा तुमने अपने लिए नया कपड़ा कब खरीदा था? माँ
के आँखों में आंसू टपकने लगे| सुरभि समझ गई कि माँ जवाब नहीं देना चाहती क्योंकि
उसकी अपनी याददाश्त में तो माँ ने कभी अपने लिए कपडे खरीदे ही नहीं| फिर
बोली-माँ-तुम निश्चिंत रहो| मैं 14 की हूँ| जल्दी से बड़ी होने दो| फिर तुम्हें
कोठी में काम भी नहीं करना होगा और हर दिवाली नए कपडे भी मिलेंगे| और यह काम मैं
करूँगी| माँ फिर रोने लगी और हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि अब सो जा मेरी चिड़िया|
सुबह जल्दी उठाना है| सुबह उठते ही माँ कोठी चली गई और सुरभि दीवाली की तैयारियों
में लग गई| पूजा की तैयारी कर ही रही थी कि टीना आ धमकी शाम का प्लान बनाकर| सुरभि
ने कहा कि शाम को मैं पूजा करुँगी| आँगन वाले घर में खीर-पुआ तैयार करूँगी| फिर
कोई बात होगी| टीना ने कहा फिर पटाखे कब जलाएंगे? सुरभि ने कहा-उसके बाद| वैसे भी
पटाखे में मेरी कोई रूचि नहीं| यह पर्यावरण के लिए तो खतरनाक हैं ही, मेरे
तुम्हारे लिए भी कम खतरा नहीं हैं| मैं तो कहूँगी-पटाखे अंकल के साथ ही जलाना|
अकेले बिल्कुल नहीं| बहुत खतरनाक होते हैं| अब जाओ, मुझे काम करने हैं| शुभ
दीवाली| शाम को मिलते हैं, अच्छा| ओके, बाय| बाय-बाय लेकिन मुझे तो पटाखे हर हाल
में जलाने हैं-टीना ने कहा| तुम साथ रहोगी तब भी, नहीं रहोगी तब भी| सुरभि ने
कहा-अपना ख्याल रखना| हैप्पी दीवाली|
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