गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 41 / युद्ध की हलचल
गणेश शंकर विद्यार्थी योरप के इस महायुद्ध ने हमारे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक हलचल मचा दी है. युद्ध की क्या, किसी भी संहारिणी घटना से हलचल मच जाना स्वाभाविक है. परन्तु, हलचल और हलचल में अंतर है, और इसी अंतर का कुछ हास्यास्पद और कुछ रुला देने वाला दृश्य हम अपने देश में इस समय देख रहे हैं. बेल्जियम की भूमि रक्त से रंगी जा रही है, पेरिस के दरवाजे तक शत्रुओं की तोपें जा पहुंची थी, फ्रांस के पश्चिमी खण्ड में शत्रु भर गए थे, परन्तु हमने यह कभी न सुना कि बेल्जियम और फ्रांस के निवासियों के हाथ-पैर फूल उठे हों, जैसे रण-क्षेत्र से तीन हजार मील से अधिक दूर बैठे हुए हमारे देश के निवासियों के फूल रहे हैं. अंग्रेजी सेना रणभूमि में कटती जा रही है और इंगलैंड के वीर सपूतों के माथे पर बल तक नहीं आता, हजारों की संख्या में वे प्रतिदिन फ़ौज में भर्ती होकर देश की मान रक्षा के लिए प्राण देने की तैयारी कर रहे हैं. हौल-दिल पैदा करते हैं, और एक-एक के चार-चार होकर स्वप्न तक में अपनी भयानकता से चौंका-चौंका देते हैं. हमें अपने देश के अधिकांश लोगों के इस बोदेपन, इस बुजदिली पर तनिक भी आश्चर्य नहीं. उस ...