किसी काम को करने के सौ तरीके हैं और न करने के एक हजार बहाने
बीते दिनों मेरी मुलाकात कुछ ऐसे छात्रों से हुई जो खुद को निरीह साबित करने में जुटे हुए थे. एक नौजवान ने कहा कि मैं अनाथ हूँ, आगे जोड़ा कि पत्नी और एक बच्चा भी है. दिव्यांग एक नौजवान का कहना था कि उसे तुरंत सरकारी नौकरी की जरूरत है. जबकि ये श्रीमन अभी बीए कर रहे हैं. वह भी दिल्ली से. ऐसे कई छात्र मिलते हैं. असल में उन्हें यह उम्मीद होती है कि अभी कोई जादू की छड़ी चलेगी और सभी समस्याओं का निदान हो जाएगा. जबकि सच से इसका कोई लेना-देना नहीं है. इस अंक में मुझे दो बातें कहनी है. एक-आप खुद को कमजोर मत बनाओ. दो-जादू की छड़ी केवल फिल्मों और जादूगरों के शो में होती है, असल जिन्दगी में कतई नहीं. कोई भी शिक्षक, दोस्त, परिवारीजन केवल आपकी मदद कर सकते हैं. तरीके बता सकते हैं. नदी तो आपको खुद ही तैरनी होगी. और वो कविता भी तो है...कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...मैं ऐसे सभी छात्रों से कहना चाहूँगा कि अगर आप गाँव में रहकर पढाई कर रहे हैं और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो टेंशन न लें. कस्बे और शहर में हैं तो भी टेंशन लेने की जरूरत नहीं है. यह बात नोट कर लें कि शार्टकट कुछ भी नहीं मिलने व...