कन्फ्यूज न हों, बच्चे को उसके मन की सुनने दें
दिनेश पाठक हाल ही में मेरी मुलाकात एक ऐसे परिवार से हुई जो इंटर पास अपने मेधावी बच्चे के आगे की पढाई को लेकर परेशान है| मैंने सभी पक्षों से बात की| मुझे जो समझ आया वह यह कि घर के सदस्य एक अनजाने भय से परेशान हैं. उन्हें आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि बाहर पढ़ने जाए और फिर वहीँ रह जाए| फिर स्वदेश लौटे ही नहीं| उच्च शिक्षित इस परिवार में बच्चे का गोल क्लीयर है| उसके मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं है| उस बच्चे ने अपनी सारी तैयारी उसी हिसाब से कर रखी है| उसे विदेश जाना है| कालेज उसने तय कर रखा है| दो विदेशी विश्वविद्यालय उसे अपने यहाँ प्रवेश देने को तैयार हैं| पर, फिलवक्त घर में सहमति नहीं बन पा रही है| बच्चा परेशान है और घर के सभी सदस्य भी| पर दोनों ही पक्षों की परेशानी के कारण अलग-अलग हैं| उसके मम्मी-पापा और बाकी घर के सदस्य चाहते हैं कि देश में कहीं रहकर पढाई करे| ऐसा होने पर इस बात की संभावना बनी रहेगी कि बच्चा अपने पास ही रहेगा| बाहरी दुनिया से उसका संपर्क उस तरह नहीं बनेगा, जैसे बाहर पढ़ाई करने से| बच्चा अपने करियर को लेकर परेशान है| उसका अपना स्वार्थ है और मम्मी-पापा का अपना| दोन...